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________________ १२ ] गौतमचरित्र । था, उसकी नाभि सुंदर थी, अंग प्रत्यंग सब सुकुमार थे, नख सुंदर थे, गुणों से वह भरपूर थी, वह सदा संतुष्ट रहती थी, उसका आत्मा पवित्र थी, बुद्धि अच्छी तीक्ष्ण थी, वह शुद्धवंश उत्पन्न हुई थी, हाव, भाव, विलास आदि गुणों से सुशोभित थी, स्त्रियोंमें प्रधान थी, पतिव्रता थी, याचकोंके लिये हित करनेवाला श्रेष्ठ दान देनेवाली थी, शील और व्रतों से विभूषित थी, उसका हृदय सम्यग्दर्शनसे भरपूर था, और वह जिनधर्मके सेवन करनेमें सदा तत्पर रहती थी ॥ ५१-५४ ॥ अनेक देशोंके स्वामी, चारों प्रकारकी सेनासे सुशोभित और बडे समृद्धिशाली राजा श्रेणिक उस चेलना रानीके साथ अनेक प्रकारके भोग भोगते हुए निवास करते थे ॥ ५५ ॥ अथानंतर अंतिम तीर्थंकर भगवान् श्रीमहावीरस्वामी अनेक देशों में विहार करते हुए विपुलाचल पर्वतके मस्तकपर समवसरणके साथ आ विराजमान हुए || ५६ || वे भगवान् महावीरस्वामी तीन छत्रोंसे सुशोभित थे और भव्य जीवोंको धर्मोपदेशरूपी अमृता पान कराकर उनके पापरूपी विषको त्रात्मा सुमतिः शुद्धवंशजा । हावभावविलासाढ्या मतल्लिका पतिव्रता ॥९३॥ याचकहितसद्दात्री सुशीलवतभूषिता । सम्यक्त्वनिर्भर स्वंता जिनधर्मरता सदा ॥५४॥ ( पंचभिः कुलकम् ) || भुजन् भोगान् तया सार्द्ध संतस्थे श्रेणिको नृपः । समृद्धो देशसंयुक्तश्चतुरंगबलान्वितः ॥ ५५ ॥ अथ तीर्थंकरो वीरो विपुलाचलमस्तके । आगतो विहरन् देशान् समवसृतिराजितः ||१६|| धर्मोपदेशपीयूषपानतो भव्यदेहि
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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