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गौतमचरित्र |
नारकी और देवोंकी स्थिति, उनकी लेश्या ऊंचाई आदि सब बातें सुनना चाहता हूं । हे प्रभो ! आप इन सब बातोंको बतलाइये ।। ७८- ८१ ॥ इस प्रश्नको सुनकर भगवान् श्रीगौतमस्वामी कहने लगे कि हे राजन् ! तू मनको स्थिर कर सुन, संसारको सुख देनेवाले ये सब विषय मैं कहता हूँ ।। ८२ ।। एक कल्पकाल बीस कोड़ाकोड़ी सागारका होता है, उसमें दस कोड़ाकोड़ी सागरका अवसर्पिणी काल और दस कोड़ाकोड़ी सागरका उत्सर्पिणी काल होता है । इन दोनों कालों से प्रत्येकके छह छह भाग होते हैं ॥ ८३ ॥ विद्वानोंने अवसर्पिणी कालके छह भागोंके नाम ये बतलाये हैं । पहिला सुषमासुषमा, दूसरा सुषमा, तीसरा सुषमादुःषमा, चौथा दुःषमासुषमा, पांचवा दुःषमा और छठा दुःषमादुःषमा ।। ८४-८५ ।। उत्सर्पिणी कालके भाग इससे उलटे हैं, अर्थात् पहला दुःषमादुःषमा, दूसरा दुःषमा, तीसरा दुःषमासुषमा, चौथा सुषमादुःषमा, पांचवां सुषमा और छठा सुषमासुषमा । इनमेंसे सुषमासुषमा काल चार कोड़ाकोड़ी सागरका है, तिसंयुक्तामित्यादिकं वद प्रभो ॥ ८१ ॥ अथावदज्जगत्स्वामी वचो विश्वसुखाकरम् । स्थिरीकृत्य मनो भूप ! शृणु सर्व गदाम्यहम् ॥ ८२ ॥ कोटी कोट्यो दशाब्धीनां प्रत्येकमवसर्पिणी । उत्सर्पिणी च कालाः षट् प्रत्येकमनयोर्मताः ॥ ८३ ॥ सुषमासुषमाद्या स्याद्वितीया सुषमा समा । सुषमादुःषमा प्रोक्ता तृतीया ज्ञानकोविदैः ॥ ८४ ॥ दुःषमासुषमा तुर्या दुःषमा पंचमी मता । दुःषमादुःषमा षष्ट्यवसर्पिण्यांच षट् समाः ॥ ८५ ॥ उत्सर्पिण्यां च ता एंव प्रतिलोमं मता जिनैः ।