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________________ पांचवां अधिकार । [ १६७ दूसरा सुषमा काल तीन कोड़ाकोड़ी सागरका है, तीसरा सुषमादुःषमा काल दो कोड़ाकोड़ी सागरका है, चौथा दुःषमासुषमा काल व्यालीस हजार वर्ष कम एक कोड़ाकोड़ी सागरका है, पांचवां दुःषमा काल इकईस हजार वर्षका है और छठा दुःषमादुःषमा भी इकईस हजार वर्षका है ऐस आगमको जाननेवाले आचार्योंने कहा है ॥८६-८८ || इनमें पहले के तीन कालों में भोगोपभोगकी सामग्री कल्पवृक्षों से प्राप्त: होती है इसीलिये चतुर पुरुष इन तीनों कालोंको भोगभूमि कहते हैं ॥ ८९ ॥ इनमें से पहले कालके जीवोंकी उत्कृष्ट आयु तीन पल्यकी होती है, दूसरे कालके जीवोंकी आयु. दो पल्यकी और तीसरे कालके जीवोंकी आयु एक पल्यकी होती है । यह आयु देवकुरु आदि उत्तम, मध्यम, जघन्य भोगभूमिके समान ही समझनी चाहिये ||९० ॥ वहांके मनुष्य जुगलिया होते हैं। पहले कालके प्रारम्भमें वहांके मनुष्य छह हजार धनुष, दूसरे कालके प्रारम्भमें चार हजार धनुष और तीसरे कालके प्रारम्भमें दो हजार धनुष, ऊँचे होते हैं ||११|| कोटीकोटयः समुद्राणां चतस्रः प्रथमे मताः ॥ ८६ ॥ द्वितीये ताः प्रमास्तिस्रो द्वे च प्रोक्ते तृतीयके । एका तुर्ये द्विचत्वारिंशत्सहस्राब्दवर्जिता ॥ ८७ ॥ प्रमा पंचमकालस्यैकविंशतिसहस्रिका । ता एव षष्ठमस्यापि प्रोक्ता चागमसूरिभिः ॥ ८८ ॥ आद्येषु त्रिषु कालेषु ददंति कल्पपादपाः । भोगं तेन मता चेयं भोगभूमिर्विचक्षणैः ॥ ८९॥ आयुराद्यत्रये काले त्रीणि हे एककं मतम् । क्रमात् पल्यानि वै देवकुर्वादिभोगभूमिवत् ॥ ९० ॥ युग्मधर्मयुता भूत्वा तेषामादौ च
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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