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________________ पांचवां अधिकार। [ १६५ कर्मोंके क्षय होनेसे मोक्षकी प्राप्ति होती है। मुक्त होनेपर यह जीव एरण्डके बीजके समान ऊपरको गमन करता है और जहां तक धर्मास्तिकाय है वहांतक अर्थात् लोकाकाशके अन्ततक ऊपरको जाता है। आगे धर्मास्तिकाय न होनेसे वहीं जाकर ठहर जाता है ॥ ७६ ॥ . ___ अथानन्तर-इसप्रकार सातों तत्त्वोंका स्वरूप सुनकर राजा श्रेणिक अपने दोनों हाथ जोड़कर मस्तकपर रखकर सज्जन पुरुषोंको पार करदेनेके लिये जहाजके समान ऐसे गौतमस्वामीसे प्रार्थना करने लगे ॥ ७७ ॥ वे कहने लगे कि हे प्रभो ! आप संदेहरूपी अन्धकारको दूर करनेकेलिये मूर्यके समान हैं इसलिये मैं आपके श्रीमुखसे अनुक्रमसे छहों कालोंका निर्णय, भोगभूमिका स्वरूप, कुलकरोंकी स्थिति, तीर्थंकरोंकी उत्पत्ति, उनके उत्पन्न होनेके मध्यका समय, उनके शरीरकी ऊँचाई, शरीरके चिह्न, जन्मके नगर, माता-पिताओंके नाम, चक्रवर्ती, नारायण, प्रतिनाराय रुद्र, नारद, कामदेव आदि महापुरुषोंके नाम, नरक, स्वर्गों में बीजवत । आलोकांताव्रजेदूर्ध्व धर्मास्तितत्त्वभावतः ॥७६॥ अथ श्रेणिकभूमीशो जगाद स्वामिनं प्रति । सज्जनतारणे पोतं शिरोन्यस्तकरांजलिः ॥७७॥ संशयतिमिरादित्य श्रोतुमिच्छामि वो मुखात् । षट्कालनिर्णय साई भोगभूमिस्वरूपकैः ॥७८॥ स्थितिं कुलकराणां वे तीर्थकरसमुद्भवम् । स्थित्यंतरालदेहोच्चलक्ष्मपुरादिसंयुतम् ॥७९॥ तन्मातृपितृसच्चक्रिकेशवप्रतिकेशवान् । रुद्रनारदकंदास्तेषां नामानि वै क्रमात ॥८॥ ततो नरकनाकेषु नारकदेवसंस्थितिम् । लेश्योच्चमि
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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