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________________ पांचवां अधिकार। [१६३ जो शील संयमसे रहित है परंतु मध्यमगुणोंको धारण करनेवाला है तथा जो दानी और मंदकषायी है वह मनुष्य आयुका बंध करता है ॥ ६७ ॥ देशवती, महाव्रती, अकामनिर्जराको करनेवाला सम्यग्दृष्टी और बालतप करनेवाला जीव देवायुका बंध करता है ॥ ६८॥ जिसके मन, वचन, काय कुटिल हैं और जो महा अभिमानी है वह ऐसा मायाचारी जीव अशुभ नामकर्मका बंध करता है तथा इनसे विपरीत काम करनेवाला अर्थात् मन बचन कायको सरल रखनेवाला, माया और अभिमान न करनेवाला जीव शुभनामकर्मका बंध करता है ॥ ६९ ॥ दूसरेके उत्तम गुणोंका ढकना, बुरे गुणोंको प्रगट करना, दूसरोंकी निंदा करना तथा अपनी प्रशंसा करना आदि कार्योंसे नीच गोत्रका बंध होता है और अच्छे गुणोंको प्रगट करना, बुरे गुणोंको ढकना, अपनी निंदा करना, दूसरोंकी प्रशंसा करना आदि कार्योंसे ऊंच गोत्रका बंध होता है ॥७० ॥ जो हिंसा, झूठ, चोरी आदि पापकार्यों में लीन रहता है और भगवान अरहंतदेवकी पूजा तिर्यमायुः स वध्नाति जिनमार्गविरोधकः ॥ ६६॥ शीलसंयमसंहीनो, मध्यमगुणसंयुतः । स वध्नाति मनुष्यायुर्दानी तनुकषायकः ॥६॥ देवायुष्कं स वनीयाद्देशव्रतमहाव्रतैः । अकामनिर्नरैः सम्यग्दृष्टी बालतपोयुतः ॥६८॥ मनोवाकायसंवक्रो मायावी गर्वसंकुलः । स बनात्यशुभं नाम शुभं तद्विपरीतकः ॥६९॥ प्रसदसद्गुणाच्छादोद्भावने तद्विपर्यये । परात्मगर्हणं शंसे नीचस्योच्चस्य बंधके ॥ ७० ॥ प्राणिहिंसादिसंरक्तो मिनेज्याविघ्नकारकः । अर्जयत्यंतरायं स वांच्छितं येन
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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