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________________ _१६२ ] गौतमचरित्र । शोक, बध, रोना, बहुत अधिक करुणाजनक रोना और संताप करना, ये सब स्वयं करना, दूसरोंसे कराना अथवा स्वयं भी करना और दूसरोंसे भी कराना इन कार्योंसे असाता वेदनीय कर्मका आस्रव होता है ॥ ६२ ॥ अरहंत भगवानकी निंदा करना, सिद्ध भगवानकी निंदा करना, तपश्चरणकी निंदा करना, संघकी निंदा करना, गुरुकी निंदा करना, शास्त्रोंकी निंदा करना और धर्मकी निंदा करना आदि कार्योंसे दर्शनमोहनीय कर्मका बंध होता है ॥ ६३ ॥ कपायोंके उदयसे जो ऐसे तीव्र परिणाम होते हैं जो द्वेषसे भरपूर होते हैं और चारित्र गुणके घातक होते हैं उससे सकल विकल दोनों प्रकारके चारित्रमोहनीयका बंध होता है ।। ६४ ।। रौद्रभावोंको धारण करनेवाला, अनेक प्रकारके पाप उत्पन्न करने, तीव्र लोभको धारण करनेवाला, शीलवतोंसे रहित और महा आरंभ करनेवाला मिथ्यादृष्टि नरक आयुका बंध करना है ।। ६५ ।। अपने मनकी बातको छिपानेवाला, शीलरित, शल्योंसे भरपूर और जिनमार्गका विरोध करनेवालाचारी जीव तिथेच आयुका बंध करता है ||३६|| दुःख बाद परिदेवनतापनैः । असद्वेद्यस्य बंधः स्यादात्मपरोभयस्थि: ।। ६२ ।। अर्हत्सिद्धतपः संघगुरुसंश्रुतधर्मणां । अपवादेन बनायो दर्शनमोहकम् || ६३ ॥ प्रकषायोदमासीत्रपरिणामो द्विषैये । द्विचारित्रं स बध्नीयाच्चारित्रगुणघातकः || ६४ || मिथ्यादृष्टिनिःशीलस्तीव्रलोभकः । नरकायुः स बध्नाति रौद्रभावो ॥ ६५ ॥ गुप्तमनाश्र मायावी निःशीलः शल्यसंयुतः ।
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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