SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौथा अधिकार। [१४१ होता है उसी प्रकार सुपात्रोंको दान देनेसे चक्रवर्ती, इंद्र, नागेंद्र आदिके अपार सुख प्राप्त होते हैं ॥२१८॥ जो दान दीन दुखी पुरुषोंको दयापूर्वक दिया जाता है वह भी भगवान जिनेंद्रदेवने प्रशंसनीय कहा है और उससे भी मनुष्यपर्यायकी प्राप्ति होती है ॥ २१९ ॥ मित्र, शत्रु, राजा, दास, वैद्य, ज्योतिषी, भाट आदि लोगोंको जो कार्यके बदले दान. दिया जाता है उससे कोई पुण्य नहीं होता ।।२२०॥जो कोढ़ी हैं, जिनके पेटमें दर्द है, शूल है, खांसी है, दमा है ऐसे रोगियोंको यथायोग्य रीतिसे औषधदान देना चाहिये ॥२२॥ औषधदान देनेसे प्राणियोंको सुवर्णके समान सुंदर शरीर प्राप्त होता है, वे अपने रूपसे कामदेवको भी लज्जित करते हैं और सदा सब रोगोंसे दूर रहते हैं ।। २२२ ॥ इसीप्रकार जो मनुप्य एकेद्रिय आदि जीवोंको अभयदान देता है उसकी सेवा उत्तम स्त्रियां रात दिन करती रहती हैं ॥ २२३ ॥ इस दत्तं दानं सुपात्रेभ्यो भूयिष्ठसुखदं भवेत् । चक्रिनागेंद्रशक्राण गोमहिप्यादिदुग्धवत् ॥२१८॥ दीनेभ्यो दीयते दानं तच्च दयानिरूपणम् । श्लाव्यं जिनेश्वरैः प्रोक्तं नरभवादिदायकम् ॥२१९॥ मित्रारिभूपदासेयवैद्यदैवज्ञचारणाः । एभ्यो यद्दीयते दानं कार्यार्थ न तु पुण्यभाक् ॥ २२० ॥ कुष्टोदरव्यथाशूलस्वासकासादिरोगिणः । स्युस्तेभ्यो भेषजं दानं प्रदातव्यं यथोचितम् ॥२२१॥ लभंते प्राणिनस्तस्माच्छरीरं कनकोपमम् । रूपनिर्जितकंदर्प सर्वरोगविवर्जितम् ॥२२२॥ एकेंद्रियादिजीवेभ्योऽभयं दानं प्रयच्छति । योऽसौ सीमंतिनीवृंदैः संवियते दिवानिशम् ॥ २२३ ॥ रणांगणे महारण्ये गिरौ
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy