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________________ २४०] गौतमचरित्र । काम करता है तो उसे दोष अवश्य लगता है क्योंकि दूध चाहे कितना ही हो तथापि थोडीसी कांजी ही उसे विगाड़ देती है ॥ २१३ ॥ जिसप्रकार सूर्यके उदय होनेसे रात्रिका अन्धकार सब नष्ट हो जाता है उसीप्रकार जो मनुष्य मन, बचन, कायकी शुद्धतापूर्वक तीनों प्रकारके पात्रोंको दान देता है उसके पापसमूह सब नष्ट होजाते हैं ॥२१४॥ पात्रोंको दान देनेसे परिणाम शांत होते हैं, आगमकी दृद्धि होती है, चारित्रकी वृद्धि होती है, सब तरहके कल्याण होते हैं, पुण्यकी प्राप्ति होती है और ज्ञानविनय उत्पन्न होता है ॥२१५ ॥ पात्रोंको दान देनेसे रत्नत्रयादि गुणोंमें प्रेम होता है, लक्ष्मी वा धनकी प्रसिद्धि होती है, सब प्रकारसे आत्माका कल्याण होता है संसारमें सुख प्राप्त होता है और अनुक्रमसे स्वर्ग तथा मोक्षकी प्राप्ति होती है ॥२१६॥ दान देनेसे ज्ञान बढ़ता है, कीर्ति बढ़ती है, सौभाग्य, बल, आयु, बुद्धि, कांति आदि सब गुण बढ़ते हैं, उत्तम स्त्रियां प्राप्त होती हैं और उत्तम सुपुत्रोंकी वृद्धि होती है ॥ २१७ ॥ जिस प्रकार गाय, भैंस आदि दूध देनेवाले पशुओंको घास खिलानेसे दूध उत्पन्न ल्पीयो दोषाय कांनिकं यथा ॥२१३॥ दानं त्रिविधपात्रेभ्यो ददते यो विशुद्धितः । तेषां नश्यति पापौघं सूर्यान्निशातमो यथा ॥२१४॥ प्रशमागमचारित्रवर्द्धनं शुभदायकम् । सुकृतोत्पादनं दानं ज्ञानविनयकारकम् ॥२१५॥ गुणप्रीतिरमाख्यातिहितसंसृतसौख्यकम् | क्रमास्वर्ग च निर्वाणं जायंते पात्रदानतः ॥२१६॥ ज्ञानसुकीर्तिसौभाग्यःबलायुर्बुद्धिकांतयः । वरयोषित्सुपुत्राश्च वर्द्धते दानतो ध्रुवम् ॥२१७॥
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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