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________________ चौथा अधिकार । [ १३६ : आदि नीच जानवर होते हैं, क्रूर होते हैं और एकेंद्रिय वा निगोद में उत्पन्न होते हैं ।। २०६ - २०८ ॥ जो मनुष्य जिना -- लय ( जिनमंदिर) बनवाते हैं वे मनुष्य इस पृथ्वीपर पूज्य और धन्य माने जाते हैं, सब मनुष्योंमें उत्तम गिने जाते हैं, सुंदर होते हैं और उनकी निर्मल कीर्ति समस्त संसार में फैल जाती है ॥ २०९ ॥ खेत जोतना, कुएसे बहुतसा जल निकालना, जिसमें घोड़ा, बैल आदि जोतने पड़ें ऐसे रथ, गाड़ी आदि बनाना, घर बनाना, कूआ बनाना आदि हिंसा के आरंभ सब अधम पुरुष ही करते हैं ।। २१० ।। जो मनुष्य प्राणियोंकी हिंसा के दोषसे जिनालय बनवाना, भगवानकी पूजा करना आदि पुण्यकार्यों का निषेध करते हैं वे मनुष्य मूर्ख हैं और मरकर निगोदमें निवास करते हैं ।। २११ ।। जिसप्रकार विषकी छोटीसी बूंदसे महासागर दूषित नहीं होता उसीप्रकार मनुष्यको गुण्यकार्योंके करने में कोई दोष नहीं लगता ||२१२|| यदि कोई मनुष्य खेती आदि हिंसा के व्यंतरा भूतयक्षाद्याः काकमार्जारशूकराः । एकेंद्रियादयः क्रूराः स्युर्मिथ्यात्वाच्छरीरिणः ॥ २०८ ॥ विदधते जिनागारान् ये ते पूज्याः महीतले । धन्या नरोत्तमाः कांता विशदकीर्तिधारिणः ॥ २०९ ॥ क्षेत्रोत्कर्ष जलाकरथादिवृषवाहनम् । गृहकूपाद्यमेतेषामारंभं कुरुतेऽधमाः || २१० ॥ जिनपूजा गृहारंभं प्राणिहिंसनदोषतः । ये वर्जयंति ते मूढा नित्येतनिगोदिनः || २११ ॥ पुण्यकृतो मनुष्यस्य नारंभो दोषभाग्भवेत् । विषकणो महासिंधोर्न किंचिदूषको यथा ॥ २१२ ॥ क्षेत्रादिक कृतः पुंस आरंभो दोषभाग्भवेत् । प्रचुरपयसो
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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