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गौतमचरित्र। अभयदानके प्रभावसे युद्धके मैदानमें, गहन वनमें, पर्वतपर, नदियोंमें, समुद्रोंमें और सिंह, सर्प आदि घातक जीवोंमें भी सदा निर्भय रहता है ।।२२४॥जो श्रीसर्वज्ञदेवके वदनारविंदसे प्रगट हुआ हो, जिसमें अहिंसा आदि व्रतोंका वर्णन हो और शिष्योंको धर्मकी शिक्षा देनेवाला हो, वह आर्हतमतमें शास्त्र कहलाता है ॥ २२५ ॥ जो मनुष्य ज्ञान बढ़ानेवाले शास्त्रोंको लिखा लिखाकर पात्रोंको देता है वह सब शास्त्रोंका पारगामी होजाता है ॥ २२६ ॥ अनेक प्रकारके अनर्थ करनेमें तत्पर रहनेवाले जो मनुष्य शस्त्र, लोहा, रस्सी, गाय, भैंस, ऊंट, घोड़ा, पृथ्वी, सोना, चांदी, सोनेकी बनी हुई गाय और स्त्रियां आदि पाप उत्पन्न करनेवाले पदार्थो को दान देते हैं वे महासागरके समान अनेक दुःखोंसे भरी हुई नरकादिक दुर्गतियोंमें पड़ते हैं ॥ २२७-२२८ ॥ शास्त्रदानके श्भावसे जीव इन्द्र होते हैं। वहां वे भगवान तीर्थकर परमदेवके कल्याणकोंमें लीन रहते हैं, अनेक देवियां उनकी सेवा करती हैं और सरिति सागरे । सर्पादौ निर्भया जीवा जायतेऽभयदानतः ॥२२४॥ सर्वज्ञवकसंजातमहिंसादिव्रतान्वितम् । शिष्यसद्धर्मदं यत्तच्छास्त्रं प्रोक्तं दिगंबरैः ॥ २२५ ॥ पात्रेभ्यो ददते शास्त्रं लेखयित्वा नरोत्तमाः। पटुत्वकारकं नित्यं ते स्युः सुशास्त्रपारगाः ॥ २२६ ॥ शस्त्रं लोहं तथा रज्जुर्गोमहिषीमयाहयः । भूमिकनकरूप्याणि स्वर्णनिर्मितगौः स्त्रियः ॥२२७॥ दुःखसागरपूर्णेषु महानर्थरताः सदा । एषां कुर्वति ये दानं ते पतंति कुयोनिषु ॥ २२८ ॥ जिनकल्याणसंरक्ता देवांगनौघसेविताः । नाकेशाः शास्त्रदानात्ते स्युः सागरोपमायुषः ॥२२९॥