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________________ [१३१ चौथा अधिकार। उसीप्रकार यह मनुष्य भी विना तपश्चरणके शोभा नहीं देता ॥१६७॥ मुनिराज इस तपश्चरणके द्वारा दो तीन भवमें ही समस्त कर्मोको नाश कर और केवलज्ञानको पाकर मोक्ष लक्ष्मीको प्राप्त होजाते हैं ॥१६८॥ धर्मोपदेश देनेवाले और देवेन्द्र, नरेन्द्र, नागेन्द्र आदि सबके द्वारा पूज्य ऐसे अरहंतदेव इस तपश्चरणके ही प्रभावसे होते हैं ॥१६९॥ वे भगवान् अरहन्तदेव, श्रीअरहन्तदेवके नामको स्मरण करने तल्लीन रहनेवाले और जैनधर्मके अनुसार पुण्य' सम्पादन करनेवाले भव्यजीवोंको इस संसाररूपी महासागरसे शीघ्र ही पारकर देते हैं ॥१७०॥ जो भूख, प्यास अठारह दोषोंसे रहित हो, रागद्वेषसे रहित हो समवप्तरणकी बारहों सभाका स्वामी हो और संसाररूपी समुद्रसे पार कर देनेके लिये जहाजके समान हो, वह देव कहलाता है ।। १७१ ॥ जो बुद्धिमान् पुरुष ऐसे अंतदेवके चरणकमलोंकी पूजा रात दिन करते हैं उनके पाप सब क्षणभरमें ही नष्ट होजाते हैं ॥१७२॥ यह भगवान् जिनेंद्रदेवकी पूजा, रोग और पापोंको दूर करनेवाली है, शुम केवलज्ञानमाप्यच । तपसा योगिनो द्वित्रिभयांति शिवश्रियम् ॥१६॥ अहंतोऽपि प्रनायंते सुतपप्तः प्रभावतः । धर्मोपदेशकर्तारः सुरासुरेंद्रसंस्तुताः ॥ १६९ ॥ ते तारयंति भव्यौवान् संसारजलवारिधौ। तन्नामस्मरणे सक्तान जैनसुकतधारिणः ॥१७०॥ दोषमुक्तो गणाधारो रागद्वेषादिवर्जितः। भवाब्धितारणे पोतः स देवः कथितो जिनः ॥१७१॥ तत्पदपूजनं प्राज्ञा ये कुर्वति दिवानिशम् । तेषां प्रविलयं पंक प्रयाति क्षणमात्रतः ॥१७२॥ हारिणी रुनपापानां शुभा संपद्वि
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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