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________________ wal गौतमचरित्र। जाता है ॥ १६२॥ जिस प्रकार वादलोंकी वर्षाके विना धान्योंकी अच्छी उपज नहीं होती उसीप्रकार विना उत्तम तपश्चरणके कर्मों का नाश भी कभी नहीं होता है ॥ १६३ ॥ यह तपश्चरण अशुभकर्मरूपी पर्वतोंके समूहको नाश करनेके लिये वज्रके समान है और कामरूपी धधकती हुई अग्निको शांत करनेके लिये पानीके समान है ॥१६४।। यह तपश्चरण इंद्रियों के विषयोंके समूहरूपी सोको वश करनेके लिये मंत्रके समान है, समस्त विघ्नरूपी हिरणोंके समुदायको रोकनेके लिये जालके समान है और अन्धकारको नाश करनेके लिये दिनके समान है ॥ १६५ ॥ इस तपश्चरणके प्रभावसे देव मनुष्य, भवनवासी आदि देव सब सेवक बन जाते हैं और सिंह, सर्प, अग्नि, शत्रु, विपत्तियां आदि सब क्षणभरमें नष्ट हो जाती हैं ॥ १६६ ॥ जिसप्रकार धान्योंके विना खेत शोभा नहीं देता, अंगारके विना स्त्री शोभा नहीं देती और विना कमलोंके सरोवर शोभायमान नहीं होता उद्यद्भानुरैनैशं तमोवृंदमिव क्षणात् ॥१६२॥ सुतपसा विना हानिः कर्मणां न हि जायते । विना मेघेन सस्यानामुत्पत्तिन क्वचिद्धना ॥१६३॥ अशुभकर्मशैलौघप्रध्वंसकुलिशोपमम् । तपोऽस्ति कामसप्ताचिज्वलज्ज्वालाशमोदकम् ॥१६४॥ इंद्रियविषयौवा हि वशीकरणमंत्रकम् । विश्वविनकुरंगौघकूटयंत्रं तमो दिनम् ॥ १६५ ॥ जायते किंकरा यम्मात्सुरासुरनरादयः । व्याघव्यालानलामित्रविपदो यांति संक्षयम् ॥१६६॥ सस्यहीनं यथा क्षेत्रं मंडनेन विना बधूः । अपञ न सरो भाति तथा मर्त्यस्तपो विना ॥ १६७ ॥ कर्मगणं समाहर्त्य
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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