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गौतमचरित्र। है, सम्पत्तियोंको बढ़ानेवाली है, पुण्यका संचय करनेवाली है और स्वर्ग मोक्षको देनेवाली है ॥ १७३ ॥ यह भगवान् जिनेंद्रदेवकी पूजा संसाररूपी समुद्रसे पार करदेनेवाली है, अत्यन्त मनोहर है तथा यश और सौभाग्यको बढ़ानेवाली है। ऐसी भगवानकी इस पूजाको जो लोग करते हैं उनके घर इन्द्र भी आकर नृत्य करता है ॥१७४॥ भगवान् जिनेन्द्रदेवके चरणकमलोंकी सेवा करनेसे संसारमें सबसे गाढ़ स्नेह होता है, आज्ञाकारी पुत्र होते हैं, हाव, भाव, विलास आदिसे सुशोभित सुन्दर स्त्री प्राप्त होती है और समस्त पृथ्वीका राज्य प्राप्त होता है ॥१७॥ यह भगवानके चरणारविंदोंकी पुजा शत्रुओंका नाश करनेवाली है, दुर्गतिरूपी बेलको नाश करने के लिये हथिनी के समान है, इच्छाओंको पूर्ण करनेवाली कामधेनुको उत्पन्न करनेवाली है, बहुत ही मनोहर है और सब प्रकारसे शुभ करनेवाली है ॥१७६। जो पुरुप भगवान जिनेंद्रदेवकी पूजा करता है वह सुमेरुपर्वतके यस्तकपर सब देव, भुवनत्रिक और इन्द्रों के द्वारा पूजा जाता है ॥ १७७ ।। धायिका । नाकमुक्तिं ददात्येव जिनार्चा पुण्यवर्धिनी ॥ १७३ ॥ भवाब्धितारिणी कांतां यशःसौभाग्यकारिणीम् । पूजां ये कुर्वते तेषां शक्रो नृत्यति तद्गृहे ॥१७४॥ वह्वीः प्रीतिः सुपुत्राश्च बधूर्विभ्रमधारिणी । राज्यं निःशेषमेदिन्याः स्युम्तच्चरणसेवनात् ॥१७॥ विपक्षदलनी चार्वी दुर्गतिलतिकाद्विपी। प्रसूतिः कामधेनूनां तदर्चा शुभकारिणी ॥ १७६ ॥ तत्सेवां कुरुते यस्तु त्रिदशेंद्रैः स पूज्यते । सुरासुरौघसंयुक्तैः कनकांचनमस्तके ॥१७७॥ अर्हद्भयो नम इत्युच्चै