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________________ चौथा अधिकार | [ ११६ व्रत किया था वे उस पुण्यके प्रतापसे शीघ्र ही गणधर पदपर पहुंच गये || १०४ || अन्य पुरुष भी जो इस व्रतको करते हैं उन्हें भी संसाररूपी समुद्रसे पारकर देनेवाली ऐसी ही विभूतियां प्राप्त होती हैं || १०५ || तदनन्तर भगवान् वीरनाथकी दिव्यध्वनि खिरने लगी । वह दिव्यध्वनि भव्यरूपी कमलों को प्रफुल्लित करती थी और मोहरूपी अन्धकारका नाश करती थी || १०६ || भगवान् वीरनाथने जीव, अजीव आदि सात तत्त्व, छह द्रव्य, पांच अस्तिकाय और जीवोंके भेद आदि लोकाकाशमें जितने पदार्थ थे सबका स्वरूप बतलाया ।। १०७ ।। समस्त परिग्रहों का साग करदेनेवाले मुनिराज गौतमने पहले किये हुए पुण्यकर्मके उदयसे भगवान के समस्त उपदेशको ग्रहण कर लिया ।। १०८ ।। इस जैनधर्मके प्रभावसे सज्जन पुरुषोंकी संगति प्राप्त होती है, अच्छे कल्याण, मधुर बचन, अच्छी बुद्धि और सर्वोत्तम विभूतियां प्राप्त होती हैं ॥ १०९ ॥ लब्धिविधाननामकम् । ते तत्सुकृतमाहात्म्याद्वभूवुर्गणिनो द्रुतम् । १०४। व्रतं येऽन्येपि कुर्वंति तेषां लब्धिर्भविष्यति । एतादृशी कथं नो हि संसारार्णवतारिका ॥ १०५ ॥ ततो वीरस्य सहकान्निरगात्सत्सरस्वती । भव्यपद्मविकासंती मोहतमः प्रणासिनी ॥ १०६ ॥ जीवादिसप्ततत्त्वं च द्रव्यं पंचास्तिकायकम् । जीवभेदं जगौ वीरः पदार्थ लोकसंस्थितम् ॥ १०७ ॥ निखिलं तस्य वाक्यं स जग्राह गौतमो मुनिः । पूर्वपुण्यविपाकेन विश्वत्यक्तपरिग्रहः ॥ १०८ ॥ साधूनां संगतिः श्रेयान् सुवचनं सुबुद्धिता । प्रकटविभवो लोके जायते जैनधर्मतः ॥ १०९ ॥ विनयान्वितपुत्रैश्च प्रसेवितक्रमांबुजाः । पूर्णचंद्र तुषाराम -
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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