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________________ १९८] गौतमचरित्र। हैं, भव्य जीवोंको धर्मोपदेश देनेवाले हैं, अनेक मुनिराजोंका समुदाय आपकी पूजा करता है, आप तीनों लोकोंको तारनेवाले हैं, कर्मरूपी शत्रुको नाश करनेमें चतुर हैं और तीनों लोकोंके इंद्र आपकी सेवा करते हैं। इसप्रकार स्तुति कर मौतमने भगवानके चरणकमलोंको नमस्कार किया और फिर मुक्तिरूपी स्त्रीकी इच्छा रखनेवाला वह गौतम इंद्रियोंके विष. योंसे विरक्त हुआ ॥९८-१०० ॥ इसके बाद ब्राह्मणकुलमें उत्पन्न हुए पांचसौ शिष्योंके साथ और अपने दोनों भाइयोंके साथ गौतमने जैनेश्वरी दीक्षा धारण की ॥१०१॥ सो ठीक ही है जो संसारके भयसे भयभीत हैं, मोक्षरूपी लक्ष्मीकी इच्छा रखते हैं और मोक्षकी प्राप्ति जिनके समीप है ऐसे लोग कभी देर नहीं किया करते हैं ॥१०२॥ श्रीवीरनाथ भगवानके समवसरणमें चारों ज्ञानोंसे सुशोभित ऐसे इन्द्रभूति, अग्निभूति, वायुभूति आदि ग्यारह गणधर हुए थे ॥१०३॥ जिन्होंने पहले भवमें लब्धिविधान नामका जेतस्त्वं भव्यजीवप्रबोधकः ॥९८॥ मुनींद्रगणपुज्यस्त्वं त्वं लोकत्रयतारकः । कर्मारिध्वंसने दक्षस्त्रिभुवनेंद्रसेवितः ॥ ९९ ॥ इति स्तुति विधायासौ ननाम तत्क्रमौ पुनः । विषयेभ्यो विरक्तोऽभून्मुक्तिप्रियप्रवांच्छकः ॥ १००॥ ततो जैनेश्वरीं दीक्षां भ्रातृभ्यां जग्रहे सह । शिष्यैः पंचशतैः साई ब्राह्मणकुलसंभवैः ॥ १०१ ॥ येषां सिद्धिः समासन्ना ते विलंब न कुर्वते । संसारभयसंत्रस्ताः शिवलक्ष्मीस्टहान्विताः ॥ १०२ ॥ इंद्राग्निवायुभूताद्याः शुभाः एकदशाभवन् । गणिनो वीरनाथस्य चतुर्ज्ञानविराजिताः॥१०३॥ यैश्चरितं व्रतं पूर्व
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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