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________________ १०६] गौतमचरित्र। करती है, अंधेरेका नाश करती है और कमलोंको प्रफुल्लित करती है उसीप्रकार भगवानकी पूजा धर्मरूपी प्रकाशको फैलाती है, पापरूपी अंधेरेका नाश करती है और भव्य जीवोंके मनरूपी कमलोंको प्रफुल्लित करती है ॥३७॥ इंद्रादिक देवोंने उस बालकका नाम वीर रक्खा । उससमय अनेक अप्सराएं और अनेक देवोंके साथ प्रसन्नता पूर्वक सब इंद्र नृत्य कर रहे थे।॥३८॥ मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान इन तीनों ज्ञानोंसे सुशोभित होनेवाले भगवानको बालकोंके योग्य वस्त्राभरणोंसे सुशोभित किया और फिर अपनी इष्ट सिद्धिके लिये उन सब इंद्रादिक देवोंने भगवानकी स्तुति की ॥३९॥ जिस प्रकार सूर्यकी प्रभाके विना कमल प्रफुल्लित नहीं होता उसीप्रकार हे वीर ! यदि आपके बचन न हों तो इस संसारमें प्राणियोंको तत्त्वोंका ज्ञान कभी न हो ॥४०॥ इस प्रकार स्तुतिकर इंद्रादिक देवोंने भगवानको फिर ऐरावत हाथीके कंधेपर विराजमान किया और आकाशमार्गसे शीघ्र ही आकर, हाथीसे उतर कर वे सब नाशिनी । जिना र्कप्रभा भव्यमनोंबुनं व्यकाशयत् ॥३७॥ वीरेति नाम देवेंद्राः कृत्वा तस्याग्रतः समम् । अप्सरोभिः समुचिता ननृ. तुर्निरैः सह ॥ ३८ ॥ सुरा बाल्योचितैर्वस्त्रैराभरणैविभूष्य तम् । तुष्टवुरिष्टसंसिध्यै ज्ञानत्रयविभूषितम् ॥ ३९ ॥ वीर ! यदि वचस्ते न तत्त्वबोधः कुतो भवेत् । प्राणिनां कमलाकोशं सूर्यतेजो विना कथम् ॥ ४० ॥ इति स्तुत्वा गजस्कंधे निवेश्य तं जिन सुराः । तरसाभ्रात्समुत्तीर्य कुंडपुरं समाययुः ॥४१॥ नीत्वा मेरौ भवत्पुत्रं
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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