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________________ चौथा अधिकार। [१०७. कुंडपुर नगरमें आए ॥ ४१ ॥ "आपके पुत्रको मेरुपर्वतपर अभिषेक कराकर लाए हैं" इसप्रकार कहकर उन इंद्रोंने माता पिताको वे बालक भगवान समर्पण कर दिये ॥२॥ इन्द्रादिक देवोंने दिव्य आभरण और वस्त्रोंसे माता पिताकी पूजा की, उनका नाम और बल निरूपण किया और फिर नृत्यकर वे सब देव अपने अपने स्थानको चले गये ॥४३॥ इसके बाद दिव्य आभरणोंसे विभूषित हुए अत्यन्त सुन्दर बे बालक भगवान महावीरस्वामी इन्द्रकी आज्ञासे आये हुए और भगवानके समान ही बालक अवस्थाको धारण करने. वाले देवोंके साथ क्रीड़ा करने लगे ॥४४॥ तदनन्तर बालक अवस्थाको उल्लंघन कर वे भगवान यौवन अवस्थाको प्राप्त हुए । उनके शरीरकी कांति सुवर्णके समान थी और शरीरकी उंचाई सात हाथ थी ॥४५॥ उनका शरीर निःखेदता (पसीनेका न आना) आदि जन्मकालसे ही उत्पन्न हुए दश अतिशयोंसे सुशोभित था। ऐसे उन भगवानने कुमारकालके तीस वर्ष व्यतीत किये ॥४६॥ तीस वर्ष बीत जानेपर विना संस्नाप्य पितराविति । आनीतोऽयं सुरेंद्राश्च प्रोक्त्वा ताभ्यां ददुः शिशुम् ॥४२॥ दिव्याभरणवस्त्राद्यैर्दपती पूज्य तहलम् । नाम चावेद्य संनृत्य स्वनिलयं ययुः सुराः ॥ ४३ ॥ ततो निजवयस्तुल्यैर्वीरो रेमे सुरैः समम् । शक्राप्तशासनैः कांतो दिव्याभरणभूषितः ॥ ४४ ॥ अथासौ शैशवं लंध्य प्रपेदे यौवनाश्रियम् । सप्तहस्तप्रमो देहो यस्याभूत्स्वर्णसद्युतिः ॥४५॥ कुमारे वत्सरान् त्रिंशहीरो निनाय संवधत्। दशभिः सहनैर्गानं निःस्वेताद्यैर्गुणैर्युतम् ॥४६॥ अथैकदा विरक्तो
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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