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________________ १००] गौतमचरित्र । और सर्वोत्तम थे। जिसप्रकार कुबेर सब धनका स्वामी है उसी प्रकार वे महाराज सिद्धार्थ भी समस्त गुणोंकी खानि थे ॥ ४ ॥ उनकी महारानीका नाम त्रिशलादेवी था। वह त्रिशलादेवी रूपकी खानि थी, सर्वोत्तम थी, चंद्रमाके समान उसका सुन्दर मुख था, हिरणके समान विशाल नेत्र थे, सुंदर हाथ थे और मूंगेके समान उसके लाल अधर थे ॥५॥ केलेके समान जंघा थे, वह मनोहर थी, उसकी नाभि नीची थी, उदर कृश था, स्तन उन्नत और कठोर थे, भोंहें धनुपके समान थीं, केश सुंदर थे और तोतेके समान सुंदर नाक थी ॥ ६॥ अपनी कीर्तिरूपी चन्द्रमाके द्वारा जिन्होंने समस्त दिशाओंको श्वेत कर दिया है ऐसे वे महाराज उस सुंदरी महारानी के साथ सुख भोगते हुए समय व्यतीत कररहे थे।॥७॥ भगवान महावीर स्वामीके जन्म कल्याणकसे पन्द्रह महीने पहले इन्द्रकी आलाले देव लोग महाराज सिद्धार्थके घर प्रतिदिन रनोंकी वर्षा करते थे ॥ ८॥ इन्द्रकी आज्ञासे आठों दिक कन्याएँ वस्त्र, आभरण धारण करती हुई माताकी सेवा करती द्राजरानो यथा धनी ॥४॥ तत्प्रिया त्रिशलादेवी जाता रूपखनिः पराः । चंद्रवका कुगाक्षी सुहस्ता विद्रुमाधरा ॥ ५॥ कदलीचरणा कांता निम्ननाभिः कृशोदरी । पीनस्तनी धनुःसुश्रुः सुकेशी शुकनासिका ॥६॥ तया समं सुखं भुजन् कालं निनाय भूपतिः । सुसुंदर्या स्वकीर्तीदुधवलीकृतदिक्चयः ॥७॥ इन्द्राज्ञया सुराश्चक्रू रत्नवृष्टिं दिने दिने । सपादं वर्षमेकं प्राग्मिनोत्पत्ते पालये ॥६॥ अष्टौ दिकन्यकाः कांता देव्यः सेवां प्रचक्रिरे । वस्त्राभरणधारिण्यो मघवलब्धशासनाः
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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