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________________ चौथा अधिकार। [ १०१ थीं तथा और भी मनोहर देवियां माताकी सेवा करती थीं ॥९॥ किसी एक दिन वह महारानी त्रिशलादेवी राजभवनमें कोमल शय्यापर सुखसे सो रही थी उस दिन उसने पुत्रोत्पत्तिको मूचित करनेवाले नीचे लिखे सोलह स्वप्न देखे ॥ १० ॥ १ ऐरावत हाथी, २ सफेद वैल, ३ गरजता हुआ सिंह, ४ शुभ लक्ष्मी, ५ फिरते हुए भ्रमरोंसे सुशोभित दो मालाएँ, ६ पूर्ण चंद्रमा, ७ उदय होता हुआ सूर्य, ८ सरोवरमें क्रीडा करती हुई दो मछलियां, ९ सुवर्णके दो कलश, १० निर्मल सरोवर, ११ लहर लेता हुआ समुद्र, १२ मनोहर सिंहासन, १३ आकाशमें देवोंका विमान, १४ सुंदर नागभवन, १५ दैदीप्यमान रत्नोंकी राशि, १९ धूम रहित अग्नि । ये सोलह स्वप्न देखे ॥ ११-१३ ॥ प्रभात होते ही वह महादेवी बजते हुए वाजोंके साथ उठी और पूर्ण शंगार कर महाराजके सिंहासनपर जा बिराजमान हुई ॥ १४ ॥ वहां जाकर उसने प्रसन्नचित्त होकर महाराजसे वे सब स्वप्न कहे ॥९॥ सा रात्रिपश्चिमे यामे सौधे कोमलतल्पके । सुखेन शयिता स्वप्नानिमान् ददर्श पुत्रदान् ॥१०॥ ऐद्रं गजं वृषं गर्नत्सिहं शुभां रमाम् । दामयुग्मं भ्रमद्धंगं पूर्णेदुं बालभास्करम् ॥ ११ ॥ मत्स्ययुग्मं सरःकोडं स्वर्णकुंभौ सरोऽमलम् । वार्द्धि तरंगसंयुक्त सिंहासनं मनोहरम् ॥१२॥ सुरविमानमाकाशे नागालयं सुशोभनम् । रत्नपुंज स्फुरत्कांतिं दहनं धूम्रवर्जितम् ॥१३॥ ततो दिनमुखे बुध्वा तूर्यनादेन साद्भुता । विश्वशृंगारमाधाय भर्तृसिंहासने स्थिता ॥१४॥ तान् स्वमान् स्वामिने देवी जगाद हृष्टमानसा । स तत्फलानि तस्यै च
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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