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________________ [. wwmaa चौथा अधिकार। पूज्य समझते हैं तथा धर्मके ही प्रभावसे तीर्थकरकी सर्वोत्तम पूज्य पदवी प्राप्त होती है। इसलिये हे राजन् ! तू सदा धर्मका सेवन कर ॥ १०९ ॥ इसप्रकार मंडलाचार्य श्रीधर्मचंद्रविरचित श्रीगौतमस्वामीचरित्र में श्रीगौतमस्वामीकी उत्पत्तिको वर्णन करनेवाला यह तीसरा अधिकार समाप्त हुआ। अथ चौथा अधिकार । इसी भरतक्षेत्रमें एक विदेह देश है जो कि बहुत ही शुभ है और अनेक नगरोंसे सुशोभित है। उसमें एक कुंडपुर नामका नगर है ॥२॥ वह नगर ऊंचे कोटसे घिरा हुआ है, धर्मात्मा लोगोंसे सुशोभित है, मणि सुवर्ण आदि धनसे भरपूर है और दूसरे स्वर्गके समान सुंदर जान पड़ता है ॥२॥ उस नगरमें राजा सिद्धार्थ राज करते थे जो धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों पुरुषार्थीको सिद्ध करनेवाले थे और अनेक राजाओंका समुदाय उनके चरणकमलोंकी सेवा करता था ॥३॥ वे महाराज कामदेवके समान सुंदर थे, शत्रुओंको जीतनेवाले थे, दाता थे, भोक्ता थे, नीतिको जाननेवाले थे अथेह भरते क्षेत्रे विदेहविषये शुभे । भूरिपुरादिसंयुक्ते भाति कुंडपुरं पुरम् ॥ १॥ तुंगप्राकारसंयुक्तं धर्मिष्ठजनसंकुलम् । मणिस्वर्णादिवित्ताब्यं नाकपुरमिवापरम् ॥ २॥ तत्र रराज सिद्धार्थों राना विश्वार्थसिद्धकः । महाभूमिपतिव्रातः सेवितपदपंकजः ॥ ३ ॥ कामरूपी रिपोनॆता दाता भोक्ता नयी वरः । विश्वगुणाकरो योऽभू
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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