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________________ ६८ ] गौतमचरित्र 1 परोक्षमें भी वंदना करता है वह तीनों लोकोंके द्वारा बड़ी 1. भक्ति के साथ बंदनीय होजाता है || १०६॥ जो मनुष्य श्री तीर्थकर परमदेवकी प्रत्यक्षमें स्तुति करता है वह तीनों लोकोंके इन्द्रोंके द्वारा अवश्य ही पूज्य होजाता है ॥ १०७॥ हे राजा श्रेणिक ! इस व्रतरूपी वृक्षकी सम्यग्दर्शन ही जड़ है, सम्यग्दर्शनका प्रशम गुण (अत्यंत शांत परिणामों का होना) ही स्कंध है, करुणा ही शाखाएं हैं, पवित्र शील ही पत्ते हैं और कीर्ति ही इसके फूल हैं । ऐसा यह व्रतरूपी वृक्ष तुम्हारे लिये मोक्षलक्ष्मीरूपी फल देवे ॥ १०८ ॥ इस उत्तम धर्मके ही प्रभावसे सदा राज्यलक्ष्मी प्राप्त होती है, धर्मके ही प्रभाव से स्वर्ग के भोग प्राप्त होते हैं, धर्मके ही प्रभावसे इन्द्रकी पदवी प्राप्त होती है जिनके दोनों चरणकमलोंकी सेवा समस्त देवगण करते हैं । धर्मके ही भावसे चक्रवर्तीकी ऐसी विभूति प्राप्त होती है जिसका पारावार नहीं है, जो सबसे उत्तम है और देव लोग भी जिसे गद्भिः स बंद्यते ॥ १०६॥ प्रत्यक्षे जिननाथस्य स्तुतिं यः कुरुतेऽनिशम् । त्रिभुवनेश्वरेणैव स कथं न हि पूज्यते ॥ १०७॥ सम्यक्त्वमूलः प्रशमप्रकांडः कारुण्यशाखः शुभशीलपत्रः । कीर्तिप्रसूनस्तवमुक्तिलक्ष्मी, राजन् ! करोतु व्रतपादपोऽयम् ॥ १०८ ॥ सद्धर्माद्राज्यलक्ष्मी प्रभवति सततं धर्मतः स्वर्गभोगो, धर्मादिद्रो द्रुतं स्यात्सकलसुरगणैः सेव्यमानांह्रियुग्मः । सद्धर्माच्चक्रिभूतिः सुरजनमहिता मानहीना प्रकृष्टा, सद्धर्मात्तीर्थरामः कुरु सुवृष यतः श्रेणिक त्वं सदा वै ॥ १०९ ॥ इतिश्रीगौतमस्त्वामिचरिते श्रीगौतमोत्पत्तिवर्णनं नाम तृतीयोऽधिकारः । ,
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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