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________________ [६७ तासरा अधिकार। ॥१००॥ वे तीनों भाई द्वितीयाके चंद्रमाके समान दिन दिन बढ़ते थे और जैसे जैसे वे बढ़ते जाते थे वैसे ही वैसे उनकी आयु, कांति, गुण, बुद्धि और पराक्रम भी बढ़ता जाता था ॥१०१॥ उन तीनों भाइयोंने व्याकरण, छंद, पुराण, आगम, सामुद्रिक (हाथ देखकर भविष्य बतलाना) और ब्राह्मणोंकी क्रियाएं सब पढ़ डालींथीं।।१०२॥ उन तीनों भाइयों में से सबसे बड़ा गौतम नामका पुत्र ज्योतिःशास्त्र, वैद्यकशास्त्र, अलंकारशास्त्र और न्यायशास्त्र आदि कितने ही शास्त्रोंमें अधिक प्रशंसनीय था ॥ १०३ ॥ जिस प्रकार देवोंका गुरु बृहस्पति है उसी प्रकार वह गौतम ब्राह्मण भी किसी शुभ ब्रह्मशालामें पांचसौ शिष्योंका उपाध्याय था॥१०४॥"चौदह महाविद्या ओंका पारगामी मैं ही हूं, मेरे सिवाय और कोई विद्वान नहीं है" इस प्रकारके अहंकारमें वह गौतम ब्राह्मण सदा चूर रहता था ॥ १०५॥ . हे राजा श्रेणिक ! जो मनुष्य तीर्थकर परमदेवकी द्वितीयाचंद्रवन्नित्यं ववृधुस्ते दिने दिने । यथा तथा वयःकांतिगुणबुद्धिपराक्रमाः ॥ १०१ ॥ व्याकरणं सुच्छंदांसि पुराणं आगमं तथा । पुत्रास्ते सततं पेठुः सामुद्रिकं द्विनक्रियाम् ॥१०२॥ज्योतिवैद्यकशास्त्राद्यलंकारप्रमुखेन वै । तर्कभाषाप्रमाणेन गौतमः श्लाध्यतां गतः ॥१०३॥ शुभायां ब्रह्मशालायामुपाध्यायोऽभवद्विजः । पंचशतसुशिष्याणां निर्जराणां गुर्यथा ॥१०४॥ चतुर्दशमहाविद्यापारगोई न चापरः । इत्यहंकारमापन्नो गौतमोऽभूदाहिमोत्तमः॥१०॥ परोक्षे तीर्थराज तं वंदति यो निरंतरम् । भूरिभक्तिविशेषेण त्रिन
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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