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गौतमचरित्र। अथवा पूर्ण चंद्रमाको देखकर समुद्र उमड़ता है उसीप्रकार पिता अपने पुत्रका मुख देखकर प्रसन्नतासे अपने शरीरमें भी नहीं समा रहा था ॥९५॥ उसी समय किसी निमित्तज्ञानीने ज्योतिषको देखकर कहा था, कि यह पुत्र श्रीगौतमस्वामीके नामसे प्रसिद्ध होगा और समस्त विद्याओंका स्वामी होगा ॥९६॥ वह ब्राह्मणका पुत्र गौतमस्वामी अपने पहिले पुण्यकर्मके उदयसे लोकोंको आनंद देनेवाला था, अपने रूपसे कामदेवको भी जीतता था और सूर्यके समान तेजस्वी था ॥ ९७ ॥ दूसरा देव भी उस स्वर्गसे चयकर उसी स्थंडिलाके उदरसे गार्ग्य नामका पुत्र हुआ। वह गार्य भी सब कलाओंमें चतुर था ॥१८॥ इसी प्रकार तीसरे देवका जीव भी स्वर्गसे चयकर केसरी नामकी ब्राह्मणीके उदरसे असन्त गुणवान् भार्गव नामका पुत्र हुआ ॥९९ ॥ जिस प्रकार कुंतीके पुत्र पांडवों में परस्पर प्रेम था उसी प्रकार इन तीनों भाइयों में भी इकट्ठे किये हुए पुण्य कर्मके उदयसे परस्पर बड़ा ही अच्छा प्रेम था सुज्योतिष प्रविचार्य दैवज्ञेनेति भाषितम् । श्रीगौतमाभिधः सर्वविद्यास्वामी भविष्यति ॥१६॥ आनंददायको यो भूल्लोकानां पूर्वपुण्यतः । रूपेण नितकंदर्पो विभाकरप्रतापकः ॥ ९७ ॥ द्वितीयो विबुधश्च्युत्वा जातम्तदुरात्ततः । गाय॑नामात्मभू देहो विश्वकलाविचक्षणः ॥९८॥ तृतीयो निर्जरो नाकात्समभेत्य सुतो वरः। केशरीजठरे जातो भार्गवः सुगुणाकरः ॥९९॥ अन्योऽन्येन महाप्रीतिस्तेषां जाता मनोहरा । यथा कुन्तीसुतानां वै सामुदायिकपुण्यतः ॥१०॥