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तोसरा अधिकार ।
[ ६३ नामकी ब्राह्मणी थी जो रूपवती, सौभाग्यवती, पतिव्रता और स्थिर चित्तवाली थी तथा रंभा और रतिदेवीके समान सुंदर थी ||७८ || वह ब्राह्मणी पवित्र थी, सदा संतुष्ट रहती थी, प्रशंसनीय थी, याचकोंको दान देनेवाली थी, मधुरभाषिणी थी, मनोहर थी, बुद्धिमती थी और अच्छे कुलमें उत्पन्न हुई थी. ॥ ७२ ॥ जिसप्रकार चंद्रमा के रोहिणी है उसी प्रकार उस ब्राह्मणके भी केसरी नामकी दूसरी ब्राह्मणी थी, वह भी स्त्रियों में रहनेवाले सब गुणोंसे सुशोभित थी और पतिके हृदयको प्रसन्न करनेवाली थी ||८०|| किसी एक दिन वह स्थंडिला ब्राह्मणी कोमल शय्यापर सो रही थी कि उसने रात्रि के अंत समय में भाग्यशाली पुत्र उत्पन्न करनेवाले शुभ स्वप्न देखे || ८१|| उसी दिन सुख संपत्तिको प्रगट करनेवाला मनोहर सबसे बड़ा देव स्वर्गसे चयकर स्थंडिलाके शुभ उदर में आया || ८२|||| उस गर्भावस्था के समय वह स्थंडिला ब्राह्मणी ऐसी सुशोभित होनेलगी थी जैसे रत्नोंसे भरी हुई रंभा वा रतिदेविका ||७८ || पूता तुष्टा सदा श्लाघ्या याचकौचित्य - दायिका | मधुरबचना कांता सुमतिः सुकुलोद्भवा ॥ ७९ ॥ द्वितीया केशरी चाभूद्रोहिणीव विधोः प्रिया । योषिद्गुणसमाकीर्णा प्रियचित्तानुरंजिनी ॥ ८० ॥ अथ निशांत्यमे यामे सुप्ता कोमलतल्पके । सा बधूः सुंदरान् स्वप्नान् ददर्श शुभपुत्रदान् ॥ ८१ ॥ तदा देवालयाच्च्युत्वा स्थंडिला जठरे शुभे । अस्थादबृद्धसुरः कांतसुखसंपत्तिकारकः ॥ ८२ ॥ शुक्तिका मुक्तिमध्येव रत्नगर्भापि वा क्षितिः । तदा सा शुशुभे बाला तुंदांतो जंतुधारिणी ॥ ८३ ॥ अपांडुरं मुखं
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