SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 101
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गौतमचरित्र। उत्पन्न होते थे और सब प्रकारके आश्रम थे ॥ ७२ ॥ मकानोंकी पंक्तियां बड़ी ही ऊंची और बड़ी ही अच्छी थीं वे कुंदके फूल और चंद्रमाके समान श्वेत थीं और बड़ी ही मनोहर लगती थीं ॥७३॥ उनमें रहनेवाले मनुष्य भी धर्म, अर्थ, काम तीनों पुरुषार्थोका सेवन करते थे, बड़े दानी, सदाचारी, रूपवान और सौभाग्यशाली थे ॥ ७४ ॥ वहांके तरुण पुरुष अपनी अपनी स्त्रियोंके साथ क्रीडा करते थे, वे स्त्रियां भी बड़ी सुंदरी थीं, अपने रूपसे रंभाको भी जीतती थीं और हाव भाव आदिसे सुशोभित थीं ॥ ७५ ॥ उसी नगरमें एक शांडिल्य नामका ब्राह्मण रहता था जो बहुत ही गुणी था, अनेक प्रकारकी विद्याओंसे सुशोभित था और अपने कुलाचारके पालन करनेमें तत्पर था॥७६॥ वह बाह्मण धनी था, ब्राह्मणोंमें मुख्य था, प्रशंसनीय था, मुखी था, दानी था, रूपवान था और तेजस्वी था॥७७॥ उस ब्राह्मणके स्थंडिला समस्तशस्यनिष्पत्तिसंकुलमाश्रमान्वितम् ॥७२॥ मंदिरपंक्तयो यत्र राजते प्रोन्नता वराः । कुंदनिशापतिस्वेताः सुंदराकृतयो ध्रुवम् ॥७३॥ भासते मानवा यत्र त्रिवर्गसाधने पराः । दानिनः शोभनाचारा रूपसौभाग्यसंयुताः ॥७४॥ तरुणा यत्र दीव्यंति स्वस्त्रीभिः सह शोभनाः । स्वरूपजितरम्भाभिर्हावभावादियुक्तिभिः ॥ ७५ ॥ शांडिल्यो नाम तत्राभूब्राह्मणः सुगुणाग्रणीः । सुविद्यास्तोमसत्पात्रः स्वकुलाचारतत्परः ॥ ७६ ॥ लक्ष्मीनिवासको योऽभूद्वाडवमुख्यतां गतः । श्लाघ्यो भोक्ता सदा त्यागी स्वरूपी तेजसा युतः ॥७७॥ स्थंडिला तत्प्रिया जाता रूपसौभाग्यधारिणी। पतिव्रताऽचलारूढा
SR No.023183
Book TitleGautam Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchandra Mandalacharya, Lalaram Shastri
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy