________________
६४]
गौतमचरित्र। पृथ्वी शोभायमान होती है अथवा मोतीसे भरी हुई सीप शोभायमान होती है ॥ ८३॥ हंसके समान गमन करनेवाली उस ब्राह्मणीका मुख कुछ सफेद होगया था और ऐसा जान पड़ता था मानो पुत्ररूपी चंद्रमाका जन्म समस्त पापोंका नाश करनेवाला होगा इसीबातको सूचित कर रहा हो ॥८४॥ जिसका शरीर सब कृश होगया है ऐसी उस स्थंडिला ब्राह्मणीके पुत्रकी उत्पत्तिको सूचित करनेवाले दोनों मनोहर स्तनोंके मुख श्याम पड़ गयेथे॥८५॥ उस समय वह स्थंडिला भगवान जिनद्रदेवकी पूजा करनेमें अपना चित्त लगाती थी
और इंद्राणीके समान जैनधर्ममें तत्पर हो गई थी ॥८॥ उस समय वह स्थंडिला शुद्ध चारित्रको धारण करनेवाले सम्यग्ज्ञानी उत्तम मुनियोंको अनेक पापोंका नाश करनेवाला शुभ आहार देती थी ॥८७॥ सूर्योदयके समय जबकि बुध, शुक्र, बृहस्पति शुभरूपसे केंद्र स्थानमें थे और भी सब ग्रह उच्च स्थानमें थे, उस समय जिसप्रकार श्री ऋषभदेवकी रानी यशस्वतीने श्रीकृषभसेनको उत्पन्न किया था, उसी प्रकार धत्ते सा हंसगमना वरा । वदंतीव सुपुत्रंदुजन्मपापतमोऽपहम् ॥८४॥ हेतुके तनयोत्पत्तेर्मनोहरे स्तनद्वये । कामिनी क्षीणसर्वांगा दधौ श्यामे सुचूचुके ॥ ८५ ॥ श्रीजिनेंद्रपदांभोनसपर्यायां सुमानसा । शचीव सा तदा जाता जैनधर्मपरायणा ॥८६॥ ज्ञानधनाय कांताय शुद्धचारित्रधारिणे । मुनींद्राय शुभाहारं ददौ पापविनाशनम् ॥८॥ मार्तडोदयवेलायामुच्चाहे गते सति । बुधशुक्रसुराचार्यकेंद्रस्थाने शुभे स्थिते ॥८६॥ यशस्वती यथा पूर्व वृषभसेनसंज्ञकम् । असूत