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________________ ५४६ * पार्श्वनाथ-चरित्र * विद्याधरके इतना कहनेपर भी उस मनुष्यको चेत न हुआ, फलतः वह उसे उसी अवस्थामें लटकता छोड़, वहांसे चला गया। यह दृष्टान्त वास्तवमें बड़ा ही रहस्यपूर्ण है। अरण्यसे इस संसारका तात्पर्य है। हाथी मृत्यु है, जो निरन्तर प्राणियोंके पीछे पड़ी रहती है । जन्म, जरा और मृत्यु ही वह कूप है । उसके जलको आठ कर्म समझना चाहिये । दो अजगरोंका तात्पर्य नरक और तिर्यचकी गतिसे है । चार कषायोंको चार भयंकर सर्प कहा गया है। वटवृक्षकी जटा-आयु है। श्वेत श्याम चूहे कृष्ण और शुक्ल पक्ष हैं। मक्खियोंका काटना विविध रोग, वियोग और शोकादिका सूचक है। मधुबिन्दुका स्वाद विषय सुख समझिये। विद्याधरको परोपकारी गुरु और विमानको धर्मो प्रदेश समझना चाहिये। ऐसे अवसरपर जो प्राणी धर्म करता है वही इस संसार के दुःखसे खुटकारा पा सकता है।" भगवानका यह उपदेश सुनकर चण्डसेनके हृदयमें ज्ञान उत्पन्न हुआ। इसके बाद बन्धुदत्तने पुनः भगवानसे पूछा,-"स्वामिन् ! अब हमारी क्या गति होगी?" यह सुन भगवानने कहा-“तुम दोनों व्रत ग्रहण कर सहस्रार देवलोकमें देव होगे। वहांसे च्युत होकर तू महाविदेहमें चक्रवर्ती होगा और चएडसेन तेरो पत्नी बनेगा। वहां सांसारिक सुख भोगनेके बाद तुम लोग दोक्षा लेकर अन्तमें मुक्ति प्राप्त करोगे।" इस प्रकार भगवानके मुंहसे सारी बातें सुनकर बन्धुदत्तने स्त्री और चण्डसेनके साथ चारित्र ग्रहण किया और तीनों जन निरतिचार पूर्वक उसका पालन करने लगे।
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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