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________________ * आठवां सर्ग कुए में दो अजगर और चार भयंकर सर्प मुंह फैलाये बैठे हुए थे। जटाके ऊपर मधुमक्खियोंका एक छत्ता था। वहांसे मक्खियां उड़ उड़कर उस मनुष्यको काटती थीं। किन्तु इतनेहीसे उसकी विपत्तियोंका अन्त न आता था। एक ओर वह जिस जटामें लटका था उसे सफेद और काले रंगके दो चूहे काट रहे थे और दूसरी ओर वह हाथो उस वृक्षको जड़ मूलसे उखाड़ फेकनेकी चेष्टा कर रहा था। इस प्रकार वह मनुष्य सब तरहसे अपनेको विपत्तिमें फंसा हुआ पाता था। अब वह धीरे-धीरे जटाके सहारे कुछ नीचे सरक कर उसो कुएं में लटक पड़ा। मधुमक्खियोंके छत्तेसे शहद टपककर उसके मुंहमें गिरने लगा, इसलिये वह मनुष्य उसीके आवादनमें सुख मानकर उसी ओर ताका फरता और मधुबिन्दुके टपकनेकी राह देखा करता था। मधुके रसास्वादनमें वह इस प्रकार तन्मय हो गया कि उसे किसी विपत्तिका ध्यान तक न रहा। उसी समय एक विद्याधर विमानमें बैठकर उधरसे कहीं जा रहा था, उसने उसकी यह अवस्था देख दया हो कहा ____"भाई ! तू आकर मेरे विमानमें बैठ जा, ताकि तुझे इन सब विपत्तियोंसे छुटकारा मिल जाय।" यह सुन उस मनुष्यने कहा“जरा ठहरिये, मधुका एक बूंद मेरे मुंहमें और आ पड़ें, तब मैं वलू।" यह सुन विद्याधरने कहा, "मैं अब ठहर नहीं सकता। मुझे यह देखकर बड़ा ही दुःख हो रहा है कि तू स्वादके पीछे इस प्रकार अन्धा हो गया है कि तुझे आसपासके खतरोंका लेशमात्र भी ध्यान नहीं है । इसे छोड़ दे, भन्यथा तू बड़ाही दुःखी होगा।
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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