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* पार्श्वनाथ चरित्र *
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राजाको जीवितदान देनेके कारण सब लोग रतिसुन्दरीकी जय पुकार-पुकार कर उसकी स्तुति करने लगे । रानीने अक्षत और पुष्पसे राजाकी पूजा की। राजाको रतिसुन्दरीका यह आत्म त्याग और यह प्रेमभाव देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई । उसने कहा, "हे प्रिये ! मैं तुझपर बहुत ही प्रसन्न हूं । तुझे जो अभिष्ट हो, वह वर तू मांग सकती है। रानीने कहा, " प्राणनाथ ! आप ही मेरे अभिष्ट वर हैं। मुझे और किसी वस्तुकी अपेक्षा नहीं है।" राजाने कहा, "भद्र े ! तूने अपना प्राण देकर मेरा प्राण बचाया है । यह कोई जैसा तैसा उपकार नहीं है । कम-सेकम मेरे सन्तोषके लिये भी, तुझे कुछ न कुछ मांगना ही होगा ।” यह सुन रानीने हँसकर कहा, – “यदि आपकी ऐसी ही इच्छा हैं, तो मेरा यह वरदान अपने पास जमा रहने दीजिये। मुझे जब आवश्यकता होगी तब मैं मांग लूंगी।" रानीकी इस बात से राजाको सन्तोष और परम प्रसन्नता लाभ हुई ।
रतिसुन्दरीके अबतक एक भी पुत्र न हुआ था । उसने एक दिन कुल देवीसे प्रार्थना की, कि - "हे माता ! यदि आपकी कृपासे मुझे पुत्रकी प्राप्ति होगी, तो मैं आपको जयसुन्दरीके पुत्रकी बलि दूंगी।" भाग्यवश दोनों रानियोंको कुछ समय के बाद एक-एक पुत्र उत्पन्न हुआ । रतिसुन्दरीको अब चिन्ता हो पड़ी, कि देवीको जयसुन्दरीके पुत्रकी बलि किस प्रकार दी जाय ? सोचते-सोचते उसे एक उपाय सुझायी दिया। उसने स्थिर किया कि राजाके पास जो वर जमा है, वह इस समय
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