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________________ * सप्तम सर्ग * ४८७ मांगना चाहिये । वरदानमें कुछ दिनोंके लिये राजासे राज्य मांग कर समस्त अधिकार अपने हाथमें कर लेना चाहिये । ऐसा करने पर आसानीसे निर्दिष्ट कार्य सिद्ध हो सकता है। यह सोचकर वह राजाके पास गयी और उसे उस वरकी याद दिलाकर कहा,-"नाथ! अब मुझे उस वरकी आवश्यकता पड़ी है । आप उसके उपलक्षमें मुझे पांच दिनके लिये राज्य देकर अपना वचन पूर्ण कीजिये।” राजाके लिये यह कार्य जरा भी कठिन न था। अतः उसने उसी समय रानीको उसके कथनानुसार समस्त अधिकार पांच विनके लिये सौंप दिये। रानीने राज्यको अपने अधिकारमें लेकर महोत्सव मनाया। इसके बाद उसने जयसुन्दरीके पुत्रको बलात् जोन मंगवाया। और उसे स्नान अर्चन करा, नन्दन, पुष्प और अक्षतादि चढ़ा, एक सूपमें सुलाफर दासोके शिरपर रखवाया। इसके बाद बाजों और खियोंके गांत-गान सहित रतिसुन्दरी उसे बलि देनेके लिये उद्या ममें देवाके मन्दिर जानेको निकली ! __इसी समय काञ्चनपुरका राजा जिसका नाम सूर था और जो एक विद्याधर था, वह आकाशमार्ग द्वारा उधरसे आ निकला। दासीके सिरपर सूर्य समान तेजस्वी बालकको देखकर उसने उसे उठा लिया और उसके स्थानमें दूसरा मृतक बालक रख दिया। विद्याधरके साथ उसकी पत्नी भी थी, जो इस समय विमानमें सो रही ही। विद्याधरने उस बालकको उसकी बगलमें सुलाकर अपनी पत्नीसे कहा,--“हे प्रिये ! सत्वर उठ ! देख तुझे
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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