SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 464
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ *षष्ठ सर्ग. नेमें मैं सर्वथा असमर्थ हूँ। यह सुन राजाने कहा-“यदि ऐसी ही बात है तो आकर राज्य सम्हालिये और मुझे दीक्षा लेने दीजिये।" कंडरीक तो यह चाहता ही था, अतएव उसने तुरत यह बात मान ली। उसी समय पुंडरीक उसे अपने साथ नगरमें ले आया और मन्त्रियोंको बुला कर कहा, कि आप लोग कंडरीकका राज्याभिषेक कीजिये । अब मैं दीक्षा ग्रहण करना चाहता हूँ। इस प्रकार कंडरीकके अभिषेकका प्रबन्ध कर पुंडरीकने उसका साधुवेश उससे मांग लिया और अपने आप दोक्षा ले ली। कंडरीकका मुख तेज हीन हो रहा था। मन्त्री, अधिकारी या नगरनिवासी कोई भी उसे आदरकी दृष्टिसे न देखते थे। बहुत लोग तो उसे व्यंग वचन कह-कह कर उसे विढ़ाने भी लगे। किसीने भी उसको आदर पूर्वक प्रणाम न किया। यह देख कर कंडरीकको बहुत ही क्रोध चढ़ा। उसने विचार किया कि पहले भोजन कर लू, फिर जिन लोगोंने मेरा अपमान किया है, उन सबको कठोरसे कठोर दण्ड दूं। यह सोच कर उसने षट्रस भोजन तैयार करनेकी आज्ञा दी। भोजन तैयार होनेपर कंडरीकने इस तरह ढूंस-ठूस कर भोजन किया, कि चौकिसे उठनेकी भी उसमें सामर्थ्य न रही। दो चार सेवकोंने उसे हाथका सहारा देकर उठाया और किसी तरह शय्या पर सुला दिया । अब कंडरीकमें एक कदम भी चलनेकी शक्ति न थी। मध्यरात्रिके समय उसे अजीर्ण हो गया। पेटमें बड़े जोरोंकी शूल वेदना आरम्भ हुई और वायु रुद्ध होगया। मन्त्रियोंको
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy