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________________ * षष्ठ सग * बातें भी समझने लगा। लोग उसे मूर्ख कह कह कर चिढ़ाते। यह बात उसे अच्छी न लगती थी। अन्तमें एक दिन इसीसे ऊब कर वह घरसे निकल पड़ा। उसे कुछ कुछ वैराग्य भी आ गया था, अतएव उसने विमलचन्द्र आचार्यके पास दीक्षा ले ली। इसके बाद वह आचार्यके आदेशानुसार चारित्रका पालन करता और योग साधता, किन्तु उसे अपना पाठ याद न आता। इससे उसने बारह वर्ष पर्यन्त आयम्विल आदिके तप किये, किन्तु फिर भी उसे एक अक्षर न आया। यह देखकर गुरुमहाराजने कहा, "हे साधो! यह तुम्हारे पूर्व जन्मका कर्म उदय हुआ है। इसीसे तुमको अपना पाठ याद नहीं होता। उदास मत हो। अब तुम केवल "रे जीव! मारुष, मा तुष !” इतना ही कहा करो। इसीसे तुम्हारा ८.ल्याण होगा। किन्तु जयदेवको यह भी याद न रहा। वह"मास तुस,मास तुस" इस प्रकार बारम्बार रटने लगा। गुरुदेवने यह देखकर उसका नाम 'मासतुस ऋषि' रख दिया और लोग भी उसे इसी नामसे पहचानने लगे। इसके बाद बहुत दिनोंतक अयम्बल आदि तप करने तथा शुकध्यान धरनेपर मासतुस ऋषिको केवलज्ञानकी प्राप्ति हुई । यह देखकर समीपस्थ देवताओंने दुदुभीनाद पूर्वक सुवर्ण कमलकी रचना की। वहां बैठकर वह केवली भगवान इस प्रकार धर्मोपदेश देने लगे :-“हे भव्य प्राणियो ! मैंने पूर्वजन्ममें शिष्योंको शास्त्र पढ़ाते और शंका समाधान करते-करते उद्विज्ञ मनसे ज्ञानावरणीय कर्मका बंध किया था, इसीसे इस जन्ममें मेरा
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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