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________________ ३५० * पार्श्वनाथ-चरित्र . शत्रु पर विजय प्राप्त करनी चाहिये । शास्त्रमें यह भी कहा गया है, कि-"तपके अजीर्ण क्रोधको, ज्ञानके अजोर्ण अहंकारको और क्रियाके अजीर्ण पर-अवर्णवादको जीतकर निवृत्ति प्राप्त करनी चाहिये। इसके अतिरिक्त क्षमासे क्रोध, मृदुतासे मान, आर्जवसे माया, और अनिच्छासे लोभ-इस प्रकार चार कषायोंको जोतनेसे संवरको प्राप्ति होती है। अज्ञानसे दुःख ओर ज्ञानसे सुख प्राप्त होता है, इसलिये निरन्तर ज्ञान प्राप्त करते रहना चाहिये। जिससे आत्मा ज्ञानमय हो । जो धोर, ज्ञानी, मौनी, और संगरहित होकर संयम मार्ग पर चलते हैं, वे बलवान मोहादिकसे भी पराजित न होकर मोक्ष प्राप्त करते हैं। हे भद्र ! मैंने तेरे दीक्षा रूपी पात्रमें तत्वोपदेश रूपी जो अन्न परोसा है, उसे उपभोग कर तू सुखी होना।” पुनः गुरुने कहा"हे महाभाग ! जिस प्रकार रोहिणोने वोहिके पांव दाने प्राप्तकर उनकी वृद्धि की थी, उसी तरह पंचमहाव्रतकी तू वृद्धि करना।" मुनिराजका यह धर्मोपदेश सुन विजय मुनिने पूछा-“हे प्रभो! रोहिणी कौन थी और उसने व्रीहिके पांच दानोंकी किस प्रकार वृद्धि की की ?” गुरुदेवने कहा-"रोहिणोका वृत्तान्त बतलाता हूँ। उसे सुन! __ हस्तिनागपुरमें दत्त नामक एक महाजन रहता था। उसके श्रीदत्ता नामक एक स्त्री थी। उसके उदरसे गंगदत्त, देवदत्त, जिनदत्त और वासवदत्त नामक चार पुत्रोंका जन्म हुआ था। इन चारोंके क्रमशः उज्झिता, भक्षिका, रक्षिका और रोहिणी
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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