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________________ -८१३ * चतुर्थ सग * साथ विवाह मण्डप से लाये गये । अनन्तर एक सुशील पण्डितने यथाविधि कुलाचार करानेके बाद मंगलाचार पूर्वक दोनोंका पाणिग्रहण करा दिया । इसके बाद गांठ जोड़े हुए वरवधू वेदिका मण्डपमें प्रविष्ट हुए । इस अवसरपर चन्दन, पुष्प ताम्बूल, वस्त्र, घोड़े और हाथी आदि से स्वजनों को भी सम्मानित किया गया और याचकों को दान दिया गया। इसके बाद विवाह विधि सम्पन्न हो जानेपर अग्नीके आस-पास फेरे दिलवाये गये। पहले फेरे में प्रसेनजित राजाने हजारों तोला सोना दिया। दूसरे फेरे में कुण्डल और हार आदि आभूषण दिये। तीसरे फरेमें थाल प्रभृति बर्तन और हाथी घोड़े तथा चौथे फेरेमें बहुमूल्य वस्त्र दिये गये । इसी प्रकार और भी प्रसंगानुसार मंगल कार्य किये गये। इसके बाद विवाहोत्सव पूर्ण होनेपर पार्श्वकुमार अपने निवासस्थानको लौट आये । मणि-काञ्चन तुल्य प्रभावती और पार्श्वकुमारका यह सम्बन्ध देखकर सबको अत्यन्त आनन्द और सन्तोष हुआ । अनन्तर प्रसेनजितने राजा अश्वसेनसे विदा ग्रहणकर स्वजनोंके साथ अपने निवासस्थानको ओर प्रस्थान किया और पार्श्वकुमार अपनी नवविवाहिता पत्नी के साथ आनन्दपूर्वक दिन बिताने लगे ।
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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