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________________ १६० पार्श्वनाथ-चरित्र * दूकानसे खरीद करते समय किसी दासीके लिये पूछताछ की। श्रीसारने रानोको बता कर उससे बनजारेका काम कर आनेको सिफारिश की अतएव रानी बनजारेका भी काम करने लगी। किन्तु जिस प्रकार रत्न मलीन हो जानेपर भी अपनी चमक नहीं छोड़ता, उसी तरह दालीपना करनेपर भो रानीका रूप लावण्य अभी सर्वथा लोप न हुआ था। उसे देखते ही बनजारेके मनमें विकार उत्पन्न हुआ और उसने अपने आदमियों द्वारा उसे समझा बुझाकर हाथ करनेको चेष्टा की, किन्तु उसे इसमें किञ्चित भी सफलता न मिल सकी। रानी उसकी यह मलीन भावना देख कर उससे रुष्ट हो गयी और उसका काम छोड़ देनेको उद्यत हुई । यह देख कर बनजारा उसका आन्तरिक भाव ताड़ गया। उसका अन्तर दूषित होनेपर भी उसने बाहरसे नाना प्रकारकी बातें बनाकर रानीको शान्त किया और उसे काम न छोड़नेके लिये राजी कर लिया। रानी फिर विश्वास पूर्वक उसका काम करने लगी। किन्तु बनजारेका हृदय अभी साफ न हुआ था। उसके मनमें अभी दुर्वासानाका ही प्रावल्य था। इसलिये जिस दिन वह वहांसे प्रस्थान करनेको था, उस दिन उसने रानीको कुछ विशेष कार्य बतला कर वहीं रोक रखा। अन्तमें जब चलनेका समय हुआ, तब उसने रानीको भी बलात् अपने साथ ले लिया और शीघ्रही अपने नगरकी ओर प्रस्थान किया। मार्गमें उसने रानीको अनेक प्रकारके प्रलोभन दिये, किन्तु वह किसी तरह उसका प्रस्ताव माननेको राजी न हुई। वह पतिका ध्यान
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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