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________________ * पार्श्वनाथ-चरित्र क्षीण हुआ करती है। वायुसे जिस प्रकार दोपककी ज्योति चलित रहती हैं, उसी प्रकार लक्ष्मी भी चलाचल रहती है । ठीक इसी तरह सारे संसारकी अवस्था बनी रहती है, अतएव बुद्धिमान मनुष्यको भूलकर भी इसमें अनुरक्त न होना चाहिये। इस प्रकार अनेक बातें सोचकर राजाने यतिधर्म ग्रहण करनेका निश्चय किया। उसने उसो समय अपने हरिविक्रम नामक कुमारको राज्यकी बागडोर सौंप दी। तदनन्तर वह तिलकाचार्य गुरुके पास गया और उनसे दीक्षा ग्रहण कर साधु हो गया। __ मुनीन्द्रने भुवनसार राजाका यह वृत्तान्त भीमकुमारको बतलाकर अन्तमें कहा-“हे भद्र ! वह भुवनसार राजा मैं ही हूं अब मैं तुझे भी यही उपदेश देता हूं कि तेरे हृदयमें आत्मकल्याणकी भावना विद्यमान हो, तो तूने जिस ब्रतको अंगीकार किया है, उस पर आ जीवन दृढ़ रहना। इससे तेरे सभी मनोरथ पूर्ण होंगे।" मुनिराजकी यह बात सुन, भीमकुमारने शिर झुका कर कहा“प्रभो! आपका आदेश मैं निरंतर पालन करता रहूंगा।" ___ इसके बाद मुनिराजकी धर्मदेशना समाप्त होने पर सब लोग उन्हें वन्दन कर अपने-अपने घर लौट आये और भीमकुमार भो देवपूजा, दया, दानादिक अगणित पुण्य कार्य करता हुआ युक् राजका पद सुशोभित करने लगा। . एक दिन भीमकुमार अपने महलमें मित्रोंके साथ हास्यविनोद कर रहा था। इतनेमें वहां एक कापालिक आ पहुँचा। उसने भीमकुमारको आशीर्वाद दे, उन्हें एकान्तमें ले जाकर कहा-"राज
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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