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________________ • द्वितीय सर्ग * कुमार ! आप बड़े ही परोपकारी पुरुष हैं। मैं आपका नाम सुनकर बड़ी दूरसे आया हूं। देखिये, मेरे पास भुवन क्षोभिणी नामक एक श्रेष्ट विद्या है। बारह वर्ष पहले मैंने इसकी पूर्वसाधना को थी। अब आगामी कृष्ण चतुर्दशीके दिन श्मशानमें मैं इसकी उत्तर साधना करना चाहता हूं। यदि आप उत्तर साधक हों तो मेरी यह विद्या आसानीसे सिद्ध हो सकती है।” कापालिककी यह बात सुन, भीमकुमारने अपने मनमें सोचा कि इस विनश्वर और असार शरीरसे यदि किसीका भला होता हो, तो नाहीं क्यों की जाय ? यह सोचकर उन्होंने कापालिकको बात मान ली। अपना अमिष्ट सिद्ध होते देख, उस पाखण्डीने पुनः कहा-“हे कुमार! अभी कृष्ण चतुर्दशीको दस दिनकी देरी हैं। तबतक मैं आपके साथ रहना चाहता हूं। आशा है, इसके लिये मुझे अनुमति देंगे।" कुमारने इसके लिये भो अनुमति दे दो, किन्तु मन्त्री पुत्रको यह अच्छी न लगी। उसने कहा-“कुमार ! यह मनुष्य मुझे अच्छा नहीं मालूम होता। इसके साथ आपको बातचीत करना उचित नहीं ; क्योंकि दुर्जनकी संगति मनुष्यके लिये विषकी तरह घातक होती है।" कुमारने कहा-“मित्र! तुम्हारा कहना यथार्थ है ; किन्तु मैं उसे वचन दे चुका हूं, अतः उसका निर्वाह करना मेरा कर्तव्य है।" इस प्रकार कुमारका स्पष्ट उत्तर मिल जानेपर भी मन्त्री पुत्रने उन्हें वारंवार समझाया, किन्तु कुमार एकके दो न हुए। इतनेमें वह कृष्ण चतुर्दशी भी आ पहुँचो, जिस दिन कापालिक उत्तर साधनाके लिये श्मशान
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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