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________________ * प्रथम सर्ग ६५ को जवाब दे दे, किन्तु मन्त्रीने उसे रोक लिया। उसने राजाको समझाते हुए कहा-राजन् ! यह आप बहुत ही अनुचित कर रहे हैं । नैमित्तिकको इस प्रकार लौटाना ठोक नहीं। नाट्याभिनय तो हम लोग जय चाहें तब देख सकते हैं, किन्तु यह नैमित्तिक वारंवार थोड़े ही आयेगा ?" ___ मन्त्रीकी यह बात सुन राजाको तुरन्त चेत आ गया। उसने कहा-“मन्त्री ! तुम ठीक कह रहे हो,मैं यह बड़ी भारो भूल करने जा रहा था। नैमित्तिकको इसी समय बुलाकर उसको बातें सुन लेना चाहिये।” अनन्तर शीघ्रही राजाके आदेशानुसार द्वारपाल उस नैमित्तिको राज-सभामें ले आया। नैमित्तिक देखनेमें बहुतही सुन्दर मालूम होता था। उसने श्वेत वस्त्र धारण किये थे। हाथमें पुस्तक लिये हुए था। सभामें प्रवेश करते ही उसने मन्त्रोच्चारण कर राजाको शुभाशीष दी। राजाने भी प्रणाम कर उसे उचित आसनपर बैठाया। नैमित्तकके बैठनेपर राजाने पूछा,-"कहिये महाराज! सब कुशल तो है ?” राजाका यह प्रश्न सुनकर नैमित्तिकने दीनता पूर्वक कहा, “राजन् ! कुशलका हाल न पूछिये।" कुशल तो ऐसी है कि कुछ कहते-सुनते नहीं बनता। राजाने चिन्तित हो पूछा,-"महाराज! ऐसी टूटी-फूटी बातें क्यों कह रहे हैं ?” क्या कोई आफत आनेवाली है या वज्रपात होनेवाला है ? नैमित्तिकने कहा,-राजन् ! वास्तव में जो आपने कहा वही होने वाला है। राजाने पुनः सशंकित हो कहा,-“हे भद्र ! जो बात आप जानते हों, वह निःशंक होकर साफ-साफ कहिये।
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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