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________________ * पार्श्वनाथ चरित्र इस उदाहरणका भोमकुमार पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा। वे बड़ी देरतक इस पर विचार करते रहे। तदनन्तर उन्होंने मुनीश्वरसे पूछा-"प्रभो ! आपको इस तरुणावलामें वैराग्य कैसे उत्पन्न हुआ ? ” मुनीश्वरने कहा-यह मैं तुम्हें सुनाता हूं, सुनो। “कुकण-देशमें सिद्धपुर नामक एक नगर है । वहां भुवनसार राजा राज करता था। एक दिन वह राज सभामें बैठा था, उसी समय वहां दक्षिण देशके नर्तकोंने उपस्थित हो, राजासे अपना अभिनय देखनेकी प्रार्थना की। राजाने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। फिर क्या था, राज-सभा नाट्य-मण्डपके रुपमें परिणत हो गयी। ताल, स्वर, छन्द और लयके अनुसार मृदंगादिक बाजे बजने लगे और नर्तकोंने “ताता, देंग-नेंगति, धप-मप, धो-धोता, थंगनि-थंगनि, घिधिकटि-धिधिकटि” से आलाप आरंभकर सभा. जनोंको अभिनय दिखाना शुरू किया। अभिनय इतना सुन्दर था, कि सभी सभाजन और राजा उसीको देखनेमें तन्मय हो गये। इसी समय राजाको द्वारपालने अष्टाङ्ग निमित्तको जाननेवाले किसी नैमित्तिकके आगमनको सूचना दो । उसने यह भी कहा कि वह शोघ्र ही आपसे मिलना चाहता है। द्वारपालकी बात सुनकर राजा झंझला उठा । उसने कहा-क्या तू देखता नहीं है कि इस समय अभिनय हो रहा है। क्या यह भी कोई नैमित्तिकके मिलनेका समय है ? राजाकी बात सुन द्वारपालका चेहरा उतर गया। वह मनमें सोचने लगा कि मैंने राजाको इस समय यह समाचार पहुँचाने में बड़ी भूल की। वह चाहता ही था कि लोटकर नैमित्तिक
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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