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________________ Ivaranamannaamannamaarnamannaamannaamanarrammarnamannamrunar * पार्श्वनाथ-चरित्र नैमित्तिकने कहा, "राजन् ! यदि आप जानना ही चाहते हैं तो मैं आपको साफ बतला देता हूँ कि एक मुहूर्तके बाद पृथ्वी पर ऐसी घोर वृष्टि होगी कि यह महल, सभा-भवन और सारा नगर जलमग्न हो जायगा।" नैमित्तिककी बात सुनकर सभीके कान खड़े हो गये और वे एक दूसरेकी ओर ताकने लगे। लोगोंको अपना कर्तव्य स्थिर करनेका भी समय न मिला । इतनेमें एकाएक उत्तर ओरको हवा चलने लगी, साथ ही ईशान कोणसे कुछ बादल भी उठते दिखायी दिये । नैमित्तिकने उन बादलोंको दिखाते हुए कहा,-"क्षणभरमें इन्हीं बादलोंसे सारा आकाश भर जायगा और यही इस जमिनको समुद्र के रूपमें परिणत कर देंगे। नैमित्तिाककी बात पूरी होते-न-होते सारा आकाश बादलोंसे भर गया और चारों ओरसे श्रावणकी सी घोर घटा घिर आयी। राज-सभामें इससे बड़ी हलचल मच गयी। सभा तुरन्त भंगकर दी गयी और नाट्याभिनय रोक दिया गया । तुरत ही सभाजनोंने अपने-अपने घरकी राह ली। बिजलीकी चमक और बादलोंकी गर्जनासे लोगोंके हृदय काँप उठे। घनघोर घटाके कारण अँधेरा छा गया और क्षणभरके बादही मूशलाधार बृष्टि होने लगो। फलतः समूचे शहरमें पानी भर गया। लोग हाहाकार करने लगे। शहरके रास्ते भी बन्द हो गये। पानीका कोई वारापार ही न था। अतः लोग बड़े. ही दुःखी हो रहे। सबको अपने-अपने प्राणोंकी पड़ी थी। किसीका धन और जीवन सुरक्षित न था। घरोमें
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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