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जंबूस्वामी
[ कल्पान्तर्वाच्यः - थेरस्स मं अज्जसुहम्मस्स श्री जंबूस्वरूपं चेदम् अग्गिवेसायण-गुत्तस्स अज्ज-जंबूनामे थेरे अंतेवासी कासव-गुत्ते ण॥२॥
रायगिहोसभ-धारिणी पुत्तो जंबू सुहम्म-गुरु-पासे। पडिवण्णो सीलवयं बालत्ते जाय-संवेगो॥८५७॥ तायागहवसपरिणीय वरट्ठकण्णाण बोहणं कुणइ। रत्तीइ तंमि समये पणसयचोरेहिं परिवरिओ ॥८५८॥ पत्तो पभवो चोरो खत्तं खणिऊण पविसइ जाव । सील-पभावा खुहिओ तो तेण वि बोहिओ सो वि॥५६॥ सगवीसाहिय-पणसय जुत्तो कयरुव्व सव्वमुज्झित्ता। निक्खंतो य पभाए जंबूसामी महामुणीसो।। ८६०॥ सोलस वासा गेहे वीसं छउमत्थ-काल-परियाओ। केवलि-चोयालीसं असीइ वरिसाइं सव्वाऊ ।। ८६१॥ बार वरसेहिं गोयम सिद्धो वीराओ वीसहिं सुहम्मो। चउसठ्ठीए जंबू वुच्छिण्णा तत्थ दस-ठाणा।। ८६२॥ मण-परमोहि-पुलाए आहारग-खवग उवसमे कप्पे। संजम-तिय-केवल-सिज्झणा य जंबूंमि वुच्छिण्णा ॥८६३॥ लोउत्तरं हि सोहग्गं जंबूसामिस्सऽइघणं।। अज्जा वि जं पइं पप्प सिवत्थी नण्णमिच्छइ॥८६४॥ नव्वाणइ कंचण-कोडियाओ जेणुज्झिया अट्ठ य बालियाओ। सो जंबूसामी पढमो मुणीणं अपच्छिमो नंदउ केवलीणं ॥ ८६५॥ जंबू-समो-पुरा-रक्खो न भूओ न भविस्सइ। सिवद्ध-वाहगा साहू कया जेणेह तक्करा ॥ ८६६॥ पभवो वि पहु जीया धणं हरंतेण चोरिया एउ। चोरीहरं च लद्धं रयण-तियं जेण गयमुल्लं ।। ८६७॥
थेरस्स णं अज्जसिजंभवस्स मणग पिउणो वच्छसगुत्तस्स अज्ज-जसभद्दे थेरे अंतेवासी तुंगियायण-सगुत्ते॥५॥
पभवो जोग्गं सीसं गणंमि संघमि न पासइ जाव। परतित्थे तो पासइ सिजंभव-भट्ट रायगिहे ।। ८६८॥