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[कल्पान्तर्वाच्यः
ऋषभदेवस्य पारणयम् रवि-मंडलओ भट्ठो करुक्करो ठाविओ पुणो तत्थ । सिरि-सेयंस-कुमारेण सिट्ठी पासइ सुमिणमेवं ।। ८०८॥ रायसहाए कहियं तेहिं मिलिएहिं भावि किंपि सुभं । सेयंस-कुमारस्स इय भणिउं गया य सट्ठाणं ।। ८०६॥ पइगेहं भमइ जिणो परं भमंतो न लेइ किंपि तहिं । कोलाहलं नराणं सुच्चा सो धावइ सहसा ।। ८१०॥ जाव जिणिंदं पासइ ता सुह-झाणेण जाइसरणं से।
उप्पण्णं ता ढोयइ, इक्खुरसं सामिणो सुद्धं ।। ८११॥ अत्र कविः
दक्खिण-करं पसारइ जा सामी ता भणेइ सो एवं । दायग-हत्थस्स अहो कहं भवामि त्ति मे कज्जं ।। ८१२॥ पूया-भोयण-संतिग-दाण-कला-पाणिगहण-कज्जेसु । मह वावारो जुत्तो तो वाम-करं भणइ सामी ॥ ८१३॥ वामोऽहं रणसम्मुह-अंकगणण जूयाइ कज्जेसु । वामंग-सिज्ज करणे अग्गे कुव्वंति मं बाढं ।। ८१४॥ एवं विवायमाणे हत्थे पडिबोहिऊण वरिसंतं। पच्चग्गेक्खु-रसेणं करेइ पहू पारणं तत्थ ।। ८१५॥ संवच्छरेण भिक्खा लद्धा उसभेण लोगनाहेण। सेसेहिं बिय-दिवसे लद्धाओ पढम-भिक्खाओ ।। ८१६॥ घुटुं च अहो दाणं! दिव्वाणि य आहयाणि तूराणि । देवा य संनिवइया वसुहारा चेव बुट्ठा य॥८१७॥ माइज घड सहस्सा अहवा माइज्ज सागरा सव्वे । एयारिस लद्धीजुओ सो पाणि-पडिग्गहो होइ॥ १८ ॥ भुवणं जसेण भयवं रसेण भवणं धणेण पडिहत्थं । अप्पा निरुवम-सुखे सुपत्तदाणं महग्घ-वियं ॥८१६॥ रिसहेस-समं पत्तं निरवजं इक्खुरस-समं दाणं । सेयंस-समो भावो हविज जइ मग्गियं हुज्जा ।। ८२०॥ उसभस्स उ पारणये इक्खुरसो आसि लोगनाहस्स। सेसाणं परमण्णं अमयरस-रसोवमं आसी॥८२१॥