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________________ कल्पान्तर्वाच्यः ] ऋषभदेवस्य अभिग्रहः [ ६६ णं जे से हेमंताणं चउत्थे मासे सत्तमे पक्खे फग्गुण-बहुले, तस्स णं फग्गुण-बहुलस्स इक्कासी पक्खे णं पुव्वण्ह-काल-समयंसि पुरिमतालस्स नयरस्स बहिआ सगडमुहंसि उज्जाणंसि, नग्गोहवरपायवस्स अहे, अट्ठमेणं भत्तेणं अपाणएणं, आसाढाहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अणंते जाव जाणमाणे पासमाणे विहरइ ॥२१२।। चउरो साहस्सीओ लोयं काऊण अप्पणा चेव।। जं एस जहा काही तं तह अम्हे वि काहामो ।।७६७॥ उसभो वर-वसह-गई चित्तूण अभिग्गहं परम-घोरं। वोसट्ठ-चत्त-देहो विहरइ गामाणुगामं तु॥७६८॥ बहली-अडंबइल्ला जोणग-विसओ सुवण्णभूमी य। आहिंडिया भगवया उसभेणं तवं चरंतेणं ।।७६६ ।। न वि ताव जणो जाणइ का भिक्खा केरिसा व भिक्खयरा। ते भिक्खमलभमाणा वणमज्झे तावसा जाया ।। ८००। नमि-विनमीणं जायाण नागिंदो विजदाण-वेयड्ढे। उत्तर-दाहिण-सेढी सट्ठी-पंचास नयराइं॥८०१॥ कच्छ-महाकच्छ-सुया जिणपयकमलं पहाण-कमलेहिं। पूर्यति पइदिणं पिया रज्ज-पओ भवइ य भणंति॥ ८०२ ॥ चलियासणो समेओ धरणिंदो तत्थ सामि-भत्ति-परे। दलृ भणेइ भरहं मग्गह ते बिंति नो एवं ॥८०३॥ तुट्ठो अप्पइ विजा अडयाल सहस परिमिया तेसिं। वेयड्डगिरिवरंमि सड्डी-पण्णास-नयराई ।। ८०४ ॥ भयवं अदीण-मणसो संवच्छर मणसिओ विहरमाणो। कण्णाहिं निमंतिजइ वत्थाभरणासणेहिं च॥८०५॥ अह गयपुरंमि बाहुबलि-सुय-सोमजसस्स सेयंसो। पुत्तो सुमिणे पासइ विमलो मेरू मए विहिओ ।। ८०६॥ सत्तुकंतो सुहडो सेयंस-पभावओ जई जाओ। एवं दिटुं सुमिणे सिरिसोमजस-नरवरेणाऽवि ।। ८०७॥
SR No.023172
Book TitleKalpantarvcahya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPradyumnasuri
PublisherSharadaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year1997
Total Pages132
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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