________________
६४ ।
नेमिनाथस्य जीवदया
[कल्पान्तर्वाच्यः किच्चा विवाह किच्चं भोइत्ता बहुविहे विसयभोए। पढम-जिणो निक्खंतो किं तुमसि य नूयणो भिक्खू ॥७३१ ।। पियरो भायरो सब्वे भाइ-जाया वयंपि य। जाययामो विवाहाय कुरु एसिं समीहियं ।।७३२ ।। न केवलं सयममि, पडंति भव-सायरे । अण्णाण मोह-सिलया पाडयंति परे वि हि।।७३३ ॥ वयमित्तेणाणुमंत-व्वं अहुणा सिं वयणं मया। जहोइयं करिस्सामि समये तुण्हिको ठिओ॥७३४ ।। माणियं माणियं ताहिं कहियं कण्हस्स सो तओ। उग्गसेणस्स दुहियं पत्थेइ राइमइयं च ।।७३५॥ पाणि-ग्गहण-निमित्तं कया य सव्वेहिं सव्व-सामग्गी। कोडिगसो वर-गय-रह-तुरगारूढे कुमारवरे ।। ७३६ ॥ दटुं भणंति सहीओ को नेमि एसु ताउ पभणंति। इंदाणीकयलवणो सुरिंदकय-लुंछणो जो य॥७३७॥ मत्त-गयंदे चडिओ आयवत्ताइ सोहिओ जो य। महाविच्छडेणपत्तो जो सो नेमी मुणेयव्वो॥७३८ ॥ इक्कु चिय रायमई वलया-मझंमि वण्णणिज्ज-गुणा । जीसे नेमी करिस्सइ लावण्ण-निही करग्गहणं ।।७३६॥ गवक्ख-संठियासु य सहीसु मज्झ ठिया य राईमई। पस्संती नेमि-वरं चिंतइ नियहियय-मज्झमि ।।७४०॥ किं पायाल-कुमारो किं वा मयरज्झओ अह सुरिंदो।' मह चेव मुत्तिमंतो अह एसो पुण्णपब्भारो।।७४१ ॥ किं तस्स करेमि अहं अप्पाणं पि य निंछणं विहिणो। निरुवम-सोहग्ग-निही एस पई जेण मह विहिओ।।७४२॥ इह आगओ पई मं परिणेउं तह वि हं न पञ्चेमि। पाविज्जइ पुण्णेहिं पुव्वकएहिं च एस वरो ।।७४३ ।। अवरं जणं न पिच्छइ इमंमि दिद्वेऽवि पियसही अहुणा । परिणियाए एयं उवलक्खिस्सइ न उण अम्हे ।।७४४ ॥