________________
५८ ]
पार्श्वनाथचरितम्
जम्म- नक्खत्ते तुह संकंतो तेण तुमं पडिक्खेहि । मुहुत्तमेगं भगवं जेण मुहंतस्स विफलेइ ॥ ६५४॥ संघ-पवडा भविस्सइ तो भणेइ जिणनाहो । जं भव्वं तं भवइ नण्णहा होइ कइया वि ॥ ६५५ ॥ मेरुं दंडं काउं पुहुविं छत्तं सक्क - सुसमत्था । लोयमलोए खित्तुं न समत्था आउं संकमणे ॥ ६५६ ॥ संघेउमिक्कसमयं आउस्स य जिणवराइ को न खमो । जिणसासण-राएणं भासणं सक्क! ते जुत्तं ।। ६५७ ॥ पंच हरसक्खरुच्चारमिय कालेण तेण उ । झाणेणं चउत्थेणं मुक्खं पत्तो महावीरो ।। ६५८ ॥ जम्मण-महव्वनिव्वाण -महं पकुव्वंति सव्व-देविंदा । जंबूदीव - पण्णत्ती- भणियं सव्वं वियाणेह ।। ६५६ ॥
इति श्री वीर - चरितम् ......
[ कल्पान्तर्वाच्यः
सेसं तहेव, नवरं जम्मणं पासाभिलावेणं भाणियव्वं जाव तं होउ णं
कुमारे पासे नामेणं ।। सूत्र १५४ ॥
धाइहिं इंद-दिट्ठाहिं लालितो जिणाहिवो ।
वर्द्धतो अंकमंके य रायाणं संचरं सया ॥ ६६० ॥ नव- हत्थ- पमाणंगो कमा पावइ जोव्वणं । इओ कुसत्थलस्सामी पसेणजी महीवई ॥ ६६१ ॥ पभावई सकण्णं च गिण्हित्ता आगओ सयं । भणइ अस्ससेणो विरत्तो कुमरो सया ।। ६६२ ॥ तहा वि तेऽवरोहेण कारिस्सं पाणि- पीडणं ।
पास करे गहित्ता य, वच्छ! पाणिग्गहं कुरु ॥ ६६३ ॥ कुमारो भइ ताय ! जाणेऽहं नेव सुंदरं ।
अविप्पहीण- पावस्स मूलं भव-तरो इमं ॥ ६६४ ॥
भोग- कम्म- खयत्थं च पिउ - आणाइ पालणं । कायव्वं च मए एवं णच्चा सामी विवाहिओ ।। ६६५ ॥
अण्णा पहू पासाए वायायण-संठिओ ।
निग्गच्छंते पुरी - मज्झा नायरे पासइ जिणो ॥ ६६६ ॥