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परिवार - जुया इंदा अट्ठाइया- महं तहा
चंद्रदर्शनम्
नंदीसर - दीवयंमि गंतूणं । किच्चा सट्ठाण संपत्ता ॥ ३७० ॥ इति श्रीवीर जन्मोत्सवः ॥
कल्पान्तर्वाच्यः
तणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे ठिइवडियं करेंति, तइ दिवसे चंद-सूर - दंसणियं करेंति, छट्ठे दिवसे धम्मजागरियं करेंति, इक्कारसमे दिवसे विइक्कंते निव्वत्तिए असुइ - जम्म- कम्म- करणे संपत्ते बारसाहे दिवसे विउलं असण- पाण- खाइम- साइमं उवक्खडाविंति उवक्खडावित्ता, मित्त-नाइ - नियग-सयण-संबंधि - परिजणं नायए खत्तिए य आमंतेइ, आमंतित्ता तओ पच्छा ण्हाया कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल- पायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई पवराइं वत्थाइं परिहिया अप्पमहग्घाभरणालंकिय- सरीरा भोयणवेलाए भोयणमंडवंसि सुहासणवरगया तेणं मित्त-नाइ - नियग-सयण-संबंधि-परिजणेणं नायएहिं खत्तिएहिं सद्धिं तं विउलं असण- पाण- खाइम - साइमं आसाएमाणा विसाएमाणा परिभुंजेमाणा परिभाएमाणा एवं वा विहरंति | सूत्र १०४ ॥
जम्म-दिणा विक्कंते दिवस- दुगे गेहि-गुरु- समीव- गिहे । जिण-पडिमग्गे सुफलिहा- मई पहाणं व रुप्पमई ।। ३७१ ॥ परिट्ठप्प - चंद-मुत्तिं विहिणा पूइत्तु ठावए तत्तो । ण्हायाभरण-सुवत्थं नियकरजुय - गहिय-निय-पुत्तं ।। ३७२ ।। चंदुदये पच्चक्खं आणित्ता मायरं च ससि समुहं । ॐ अरहं चंदोऽसि निसागरोऽसी निसाइ- पहू ।। ३७३ ।। नक्खत्तपइरस य ओसहीगब्भोसि सयलजणपुज्जो । अस्स कुलस्स य रिद्धिं विद्धिं पवरं पसिद्धिं च ॥ ३७४ कुरु कुरु इय ससि - मंतं, उच्चरंतो समाइ- पुत्तस्स । चंदं दरसेइ गुरु सपुत्त-माया य नमइ गुरुं ॥ ३७५ ॥ देइ गुरू आसीसं तुम्हाणं संपयं कुणउ चंदो । तत्तो य चंद-मुत्तिं विसज्जए तंमि दिवसंमि ।। ३७६ ॥ जइ हुज्ज चउदिसिं अमावस्सा य रुज्जं नहं च नो चंदो । दिस्सइ तह संझाए कायव्वं चंद- दंसणयं ॥ ३७७ ॥