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२८ ] - महावीरगर्भचलनम्
[ कल्पान्तर्वाच्यः कुरंड-रंडत्तण-दूहगाइ निंदुत्ति वंझा-विसकण्णगाइ। जम्मंतरे खंडिय-सील-भावा नाऊण कुजा दढसीलभावं ॥ २६७॥ किं मया पड्डया चत्ता चाइया वा य किं मया। अहवा लहु-वच्छाणं माउए विओगो कओ॥२६॥ किं वा उण्ह-जलेणं सबाल-उंदर-बिलाणि भरियाणि । संडग-कीडिय-विवरं पलावियं उण्ह-नीरेणं ॥२६६॥ किं वा सवत्ति-पुत्तुवरिं विदुटुं विचिंतियं च मए। संडग-नीडाणि य वा पक्खीणं पाडियाणि मए।। ३००॥ गब्म-थंभण-साडण-पायण-पमुहाणि पावकम्माणि । पुव्वभवे दुट्ठाई कयाई वा मंत-तंताई ॥३०१॥ एवं दुह-संतत्ता दिट्ठा सा सही-जणेण चउरेण । पुट्ठा न भणइ किंची कुसलं ते भयणि! गब्भस्स ।। ३०२ ॥ तो सा तिसला भासइ गब्भ कुसले य किमत्थि मे दुक्खं । तं सोऊणं ताओ खिण्णाओ कहति रायस्स ॥३०३ ॥ सो विय दुक्खं पत्तो नयर-जणो य तह सोगमावण्णो। इत्थंतरंमि वीरो सव्वं जाणेइ णाण-वसा ।। ३०४ ॥ किं कुम्मो कस्स वा बूमो मोहस्स गइ एरिसी। दुक्खि [दुस्स?] धाउ ब्व अम्हाणं गुणो दोस-निबंधणं ॥३०५॥ पमोयाय कओ आसी माउ-खेय-निबंधणं। नालिकेर जले नत्थो कप्पूर इव मे गुणो॥३०६ ॥ इय चिंतिऊण चलियं वीर-जिणंदेण किंचि तो माया। हरिसागय-रोमंचा कहइ ममत्थीह पुण्ण-भरो ।। ३०७॥ नरवइ-पमुहो लोओ पह?-मणसो य सव्व-नयरंमि। वद्धावणयं रम्मं कारावेइ य गयसोओ॥३०८॥
तए णं सा तिसला खत्तियाणी ण्हाया कयबलिकम्मा कय-कोउयमंगल-पायच्छित्ता जाव सव्वालंकार-विभूसिया तं गब्भं परिवहइ ।।
अइदिण-सयणऽब्भंगण-लोयणं जणहसण-कहण-पमुहाणि । ... नो कायव्वाणि तए कहंति सहीओ जओ भणियं ।। ३०६॥