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________________ कल्पान्तर्वाच्यः ] त्रिशलायाः गर्भपतने शंका [ २७ पासमाणे पासइ उप्पाडेमाणे उप्पाडेइ उप्पाडियं इइअप्पाणं मण्णइ तक्खणमेव बुज्झइ तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झइ जाव अंतं करेइ। इत्थी वा पुरिसो वा सुविणंते एगं हिरण्णरासिं वा सुवण्णरासिं वा रयणरासिं वयररासिं वा पासमाणे पासइ दुरूहमाणे दुरूहइ दुरूढमिति अप्पाणं मण्णइ तक्खणमेव बुज्झइ जाव अंतं करेइ तेणवभवग्गहणेणं। इच्चाइ महासुविण-वियारो॥ तए णं तीसे तिसलाए खत्तियाणीए अयमेवारूवे जाव संकप्पे समुप्पज्जित्था-हडे मे से गब्भे? मडे मे से गब्भे? चुए मे से गब्भे? गलिए ये मे से गब्भे ? एस मे गब्भे पुब्बिं एयइ, इयाणिं नो एयइ त्ति कट्ट, ओहयमणसंकप्पा चिंतासोग-सागरं पविठ्ठा, करयलपल्हत्थमुही, अट्टज्झाणोवगया भूमिगय-दिट्ठिया झियायइ, तं पि य सिद्धत्थ-रायवर-भवणं उवरयमुइंग-तंतीतलताल-नाडइज्ज-जणमणुजं दीणविमणं विहरइ ।। सूत्र ६२॥ जइ सच्चमिमं जायं अस्स गब्भस्स ता अहं अहण्णा। निप्पुण्णा मंदभग्गा जायाहं इत्थि-वग्गंमि ॥२६०॥ अहवा चिंतारयणं न चिट्ठइ भग्गहीणगेहमि । अमय-पाणेच्छा पुण न पुज्जए पावितिसियाणं ॥२६१ ॥ हा! धी धी दइव! तुमं जेण तए मे मणोरह-कप्पतरू । उम्मूलिओ (समूलो) समूलं पाडिया मेरु-सिहराओ॥२६२ ॥ अहवाहं किं कुव्वे कस्सग्गे वा भणामि दुक्खमिणं । दुवियड्ड-दईवेणं दड्डा तह पातगेहिं च ॥ २६३ ।। रे दइव! किमुट्ठिओसि अणंतगुणदुक्खदाण-दुल्ललिओ। धी! संसारमसारं धी! कामसुहं अलं तेण ।। २६४ ॥ अहवा किं पुव्व-भवे मए कयं दुक्कयं च अइगुरुयं । वरसील-खंडणाइ सुत्ते भणियं जओ एयं ॥२६५ ।। पसु-पक्खि-माणुसाणं बाले जो विउवए महापावो । सो अणवच्चो जायइ अह जायइ तो वि वजिजा ॥२६६ ॥
SR No.023172
Book TitleKalpantarvcahya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPradyumnasuri
PublisherSharadaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year1997
Total Pages132
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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