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स्वप्रलक्षणपाठकाः
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कल्पान्तर्वाच्यः ]
सव्व-पउमाण संखा इग कोडी वीस लक्ख तह सहसा। पण्णासिगसयवीसा (१२०५०१२०) नायव्वा जिणवरुद्दिट्ठा ॥२४६॥ गयेण विस्स-सोंडीरो धम्म-धोरी गवेण उ। सिंहेण णिजओ सूरो सिरीए विस्स-पूइओ॥२४७॥ सज्जणाणं सया मन्नो ससिणा नयणामयं ।। सूरेण तमसो हंता कुलोत्तमं सो झएणा उ॥२४८॥ कुंभेण गुण-संपुण्णो सरसा विस्स-तावहो। सागरेण य गंभीरो विमाणेणामरासओ॥२४६॥ मणि-पुंजेण लोयाणं महग्यो य भविस्सइ । निद्भूम-वण्हिणा दित्तो केवलनाण-तेयसा ।। २५०॥ चउदस-रज्जुमित्तस्स लोयस्साहिवइ भविस्सइ सामी। पुत्तो ते तिसलाए इय संसंति फलं सुमिणा ॥२५१॥
रयावित्ता कोडुंबिय-पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी खिप्पामेव . भो! देवाणुप्पिया! अटुंग-महानिमित्त-सुत्तत्थ-धारए विविह-सत्थ-कुसले सुविण-लक्खण-पाढए सद्दावेह ॥ सूत्र ६४॥
अंगं' सुमिणं च सरं भोमं वंजणं लक्खणं उप्पायं । अट्ठमयं अंतरिक्खं लोयण-फुरणाइयं अंग॥२५२ ॥ इत्थीणं वामंगं पुरिसाणं होइ दाहिणंगं च। सुमिणाणं च वियारो सुहासुहो सुमिण-विजा. य॥२५३॥ दुग्गाइ सिगालाइ सर विण्णाणं च होइ सर-विजा । भोमं भू-कंपाइ मस-तिलगा इय वंजणयं ॥२५४ ॥ कर-चरणाइसु रेहा पमुहं सामुद्दियुत्त-लक्खणयं । उक्कापायाइ तहा उप्पायं तं वियाणाहि ।।२५५ ॥ सुक्काइय-गहाणं उदयत्थमणाइ णाणमिह नेया। सा अंतरिक्ख-विजा अटुंगनिमित्तमिणमेव ।।२५६॥
तए णं ते सुविण-लक्खण-पाढगा सिद्धत्थस्स खत्तियस्स कोडुंबिअ-पुरिसेहिं सद्दाविया समाणा हट्ठ तुट्ठ जाव हियया, पहाया, कयबलिकम्मा, कयकोउय- .