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नागकेतुकथा
इयं चिंतिय जा सुत्तो कुडीरए पवर- झाण-संजुत्तो । ता पज्जलिओ अग्गी कहिंचि णायं विमायाए ॥ ८६ ॥ मुक्को. तीइ कुडीरे अग्गी सो तेण झत्ति जलियंगो । मरिउं सुह-झाण-वसा संजाओ नागकेउ त्ति ॥ ८७ ॥ सो जा न मरइ बालो ता जीवावेमि तत्थ संपत्तो । धरणिंदो तस्स रक्खं करेइ पुप्फाइ - सिज्जाए ॥ ८८ ॥ इत्थंतरंमि राया तद्धणमायाउं पेसिया पुरिसा । धरणेण हक्किया ते बंभण-वेसेण पवरेण ॥ ८६ ॥
रण्णो तेहिं कहियं राया सयमेव आगओ तत्थ । पवितं भणइ निवं धरणिंदो कहइ किं कुणसि ॥ ६० ॥
सो बेइ रायनीई धणं अपुत्तस्स गिण्हइ राया ।
सो वयइ सिट्ठि-पुत्तों जीवंतो पुव्व-भवाइ-सरूवं कहित्तु सव्वं एसो महाणुभावो महप्पभावो अट्ठम-तवप्पभावा नाओ एअस्स सव्व वृत्तंतो । तेणागओहमेसो धम्म- पहावं पयासेउं ॥ ६३॥ एवं चैव वइत्ता कंठे बालस्स धरणो गओ सठाणं ते सव्वे
हार पक्खित्ता ।
आगया ठाणं ॥ ६४ ॥
अह अन्नया कयाइ कोऽवि नरो साहू चोर- बुद्धीए । हणिओ रण्णा सोविहु सुहभावा वंतरो जाओ ॥ ६५ ॥ नायं सव्वं तेणं ओहिए आगओ सकोव - परो ।
रायाणं भू-पीढे पक्खित्ता भासए एवं ॥ ६६ ॥
रे मूढ ! सो य अहयं अचोर चोरत्ति मारिओ जेणं । जं कुव्वे तं पिच्छसु विउव्विया गाम - तुल्ल-सिला ।। ६७ ।।
अत्थि कहमेयं ॥ ६१ ॥
नरेस - पमुहाणं । भविस्सइ य ॥ ६२ ॥
मा होउ साहु- जिणहर- संघ - विणासुत्ति नागके उणा य । उड्डुं पासा ओवरिं चडिउं धरिया पडंती सा ॥ ६८ ॥ उवसमिओ तव्वयणा संहरिया सा सिला भणइ एवं । एयस्स पसायेणं मुक्का भो रायपमुह नरा ॥ ६६॥
[ कल्पान्तर्वाच्यः